अध्याय ६ ब्राह्मण.२ कहा कि । मे-मुझसे । एषः-यह । वर:म्वर । + त्वया-श्राप करके । प्रतिज्ञातः प्रतिज्ञात किया गया है। तु-अब । याम्- जिस । वाचम्-बात को।त्वम्-नापने । कुमारस्य अन्ते- मेरे लड़के से । अभाषथा:-पूछा था । ताम् + वाचम्-उसी वात को । मे मेरे लिये । ब्रूहि कहिये । इति=ऐसा कहा। भावार्थ । हे सौम्य ! प्रवाहण राजा के वचन को सुनकर गौतम उद्दालक ऋषि बोले कि, जो जो प्रश्न आपने मेरे लड़के से किये थे उन्हीं को मुझसे कहिये और उन्हीं के बारे में उपदेश दीजिये यह मैं मांगता हूं ॥ ५ ॥ मन्त्रः ६: स होवाच देवेषु चै गौतम तद्वरेषु मानुषाणां बहीति ।। पदच्छेदः । मः, ह, उवाच, देवेषु, वे, गौतम, तत्, वरेषु, मानुषा- णाम् , ब्रूहि, इति ॥ अन्वय-पदार्थ। इति इस पर । सः वह प्रवाहण राजा। + गौतमम् गौतम से । उवाचबोला कि । गौतम-हे गौतम ! । तत्-यह वर । देवेपु-देव सम्बन्धी । वरेषु-वरों में से है । त्वम्-त् । मानुपाणाम्-मनुप्यसम्बन्धी वरों में से । + अन्यतमम्- कोई । + वरम्-वर । हस्पष्ट । हि-मांग ले । भावार्थ । इस पर राजा ने कहा कि, हे गौतम ! सब देववरों में से यह वर अतिश्रेष्ठ है इस लिये उस वर को छोड़ कर मनुष्य- सम्बन्धी वर जो आप चाहें मांग लें ॥ ६॥.
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