अध्याय ६ ब्राह्मण ३ ७१७ 4 . . - 1 संस्रवम् , अवनयति, प्राणाय, स्वाहा, वसिष्ठायै, स्वाहा, इंति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संस्रवम् , अवनयति, वाचे, स्वाहा, प्रतिष्ठायै, स्वाहा, इति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संस्रवम् , अवन- यति, चक्षुपे, स्वाहा, संपदे, स्वाहा, इति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संस्रवम् , अवनयति, श्रोत्राय, स्वाहा, आयतनाय, स्वाहा, इति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संत्रवम्, अवनयति, मनसे, स्वाहा, प्रजात्य, स्याहा, इति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संस्रवम् , अवनयति, रेतसे, स्वाहा, इति, अग्नौ, हुत्वा, मन्थे, संस्रवम् , अवनयति ॥ अन्वय-पदार्थ। ज्येष्ठाय स्वाहा-ज्येष्ट के लिये आहुति देता हूँ । श्रेष्ठाय स्वाहा श्रेष्ठ के लिये पाहुति देता है .। इति इस प्रकार । अग्नौ-अग्नि में । हुत्वा-होम करके । मन्थे-मन्थ में। संत्र- वम्बचे खुचे घृत को। अवनयति छोड़ता जाय । प्राणाय स्वाहा प्राण के लिये आहुति देता है। वसिष्ठायै स्वाहा वसिष्ठ के लिये आहुति देता हूँ। इति इसी तरह । अग्नौ-अग्नि में । हुत्वा-होम करके । मन्थे-मन्थ में। संनवम्बचे खुचे घृत को। अवनयति छोड़ता जाय । वाचे स्वाहाचायी के लिये पाहुति देता है। प्रतिष्ठायै स्वाहा-प्रतिष्ठा के लिये आहुति देता हूँ । इति इस तरह । हुत्वा-होम करके । मन्थे मन्थ में। संन्नवम्बचे खुचे घृत को। अवनयति-डालता जाय । चक्षुषे स्वाहा नेश के लिये पाहुति देता हूँ।संपदे स्वाहा-संपद् के लिये पाहुति देता है। इतिइस तरह । अग्नौ-अग्नि में । हुत्वा-होम करके । मन्थे-मन्थ में। संस्नवम्बचे खुचे घृत को यति-ढालता जाय । श्रोत्राय स्वाहा श्रोत्र के लिये पाहुति, देता हूँ। आयतनाय स्वाहा-आयतन के लिये पाहुति देता हुँ । इति इस तरह । अग्नौ-अग्नि में। हुत्वा-होम करके । 1 अवन-
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