पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७६५

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अध्याय ६ब्राह्मण ४ ७५१ , मन्त्र: १० अथ यामिच्छेन्न गर्ने दधीतेति तस्यामर्थ निष्ठाय मुखेन मुखछ संधायाभिप्राण्यापान्यादिन्द्रियेण ते रेतसा रेत आदद इत्यरेता एव भवति ॥ पदच्छेदः। अथ, याम्, इच्छेत् , न, गर्भम् , दधीत, इति, तस्याम् , अर्थम् , निष्ठाय, मुखेन, मुखम्, संधाय, अभिप्राण्य, अपान्यात्, इन्द्रियेण, ते, रेतसा, रेतः, आददे, इति, अरेताः, एव, भवति । अन्वय-पदार्थ । + इयम्-यह मेरी स्त्री । गर्भम्-गर्भ को । न=न । दधीत धारण करे । अथ-अगर । इति=ऐसी । याम्= जिस स्त्री के प्रात । इच्छेत्-पुरुष इच्छा करे तो तस्याम्-उस स्त्री में । अर्थम्-प्रजननेन्द्रिय को । निष्ठाय- रख कर । मुखेन-मुख से । मुखम्-मुख को । संधाय-मिला कर । अभिप्राण्य-उद्दीपन कर । अपान्यात्मैथुन करे। + एवम् वन्-यह कहता हुआ कि । + अहम्-मैं । इन्द्रियेण= अपनी इन्द्रिय करके ।+च-और । रेतसा-वीर्य करके । ते- तेरे । रेतः वीर्य को। प्राददेखींचता हूँ । इति-ऐसा करने से।+सा-वह । श्ररेता:वीर्य रहित । एव-अवश्य । भवति हो जाती है यानी गर्भधारण योग्य नहीं रहती है। भावार्थ । हे सौम्य ! यदि स्त्री विवाह के पश्चात् चाहे कि मैं गर्भ धारण न करूं, और परोपकार में अपने समय को .