अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७५३ इन्द्रियेण-अपनी इन्द्रिय के साथ । ते-तेरे । रेत:-वीर्य को। आदधामि स्थापित करता हूं। + तदा तब + सा-वह खी। पव-अवश्य । गर्भिणी गर्भवती । भवति होती है। भावार्थ । अगर पुरुष चाहे कि मेरी स्त्री गर्भ को धारण करे तो वह अपनी स्त्री की योनि में प्रजननेन्द्रिय को रखकर मुख से मुख मिला कर और प्रवेश करके और उद्दीपन करके भोग करे, और उसी स्त्री से कहे कि वीर्य दान देनेवाली अपनी प्रजनन इन्द्रिय के साथ तेरे रज को स्थापित करता हूं तव वह स्त्री अवश्य गर्भवती हो जाती है ॥ ११ ॥ मन्त्र: १२ अथ यस्य जायायै जारः स्यात्तं चेद् द्विष्यादामपा- त्रेऽग्निमुपसमाधाय प्रतिलोम शरवर्हिःस्ती, तस्मि- नेताः शरभृष्टीः प्रतिलोमाः सर्पिषाऽक्ता जुहुयान्मम समिद्धेऽहौषीः प्राणापानौ त आददेऽसाविति मम समिद्धेऽहौषी पुत्रपशूछस्त आददेऽसाविति मम समि- हौपीरिष्टासुकृते त अाददेऽसाविति मम समिद्धेऽहौषी- राशापराकाशौ त आददेऽसाविति स वा एष निरिन्द्रियो विसुकृतोऽस्माल्लोकात्ौति यमेवं विद्राह्मणः शपति तस्मा- देवविच्छोत्रियस्य दारेण नोपहासमिच्छेदुत ह्येवंवित्परो भवति ॥
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