पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७७

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अध्याय १ ब्राह्मण ३ . . - अस्य, सुवर्णम् , तस्य, वै, स्वरः, एव, सुवर्णम् , भवति, ह, अस्य, सुवर्णम् , यः, एवम् , एतत्, साम्नः, सुवर्णम् , वेद ।। अन्वय-पदार्थ। यःो । एतस्य-इस । साम्नः साम के । सुवर्णम्-कंठा- दिस्थान संबन्धी वर्ण को । हभली प्रकार । वेद-आनता है अस्य-उसी को । सुवर्णम्-संसारी धन । भवति-मिलता है। + च-और । तस्य-उस उद्गाता का । वै-निश्चय करके। स्वर:= उत्तम स्वर उच्चारण करना। एव-ही। सुवर्णम्-श्रेष्ट धन है। +च-और । याजो । साम्न: साम के । एवम्-कहे हुये प्रकार । एतत् इस । सुवर्णम्-सुस्वर उच्चारण को । वेद- जानता है । अस्य ह उसको ही। सुवर्णम्-यह लौकिक धन । भवति-मिलता है। भावार्थ । है सौम्य ! जो इस साम के कंठादि स्थान संबन्धी वर्ण को जानता है उसी को संसारी धन प्राप्त होता है, उद्गाता को उत्तम स्वर से वाणी का उच्चारण करना ही श्रेष्ठ धन है, जो साम के, ऊपर कहे हुये प्रकार सुस्वर के उच्चारण करने को जानता है, उसीको यह लौकिक धन मिलता है ॥ २६ ॥ मन्त्रः २७ तस्य हैतस्य साम्नो यः प्रतिष्ठां वेद प्रति ह तिष्ठति तस्य वै वागेव प्रतिष्ठा वाचि हि खल्वेप एतत्माणः प्रति- प्ठितो गीयतेऽन्न इत्युहैक आहुः॥ पदच्छेदः। तस्य, ह, एतस्य, साम्नः, यः, प्रतिष्ठाम् , वेद, प्रति, ह,