पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७८२

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वाले । ७६८ बृहदारण्यकोपनिषद् स० उस अनुकूल । एनाम्-इस स्त्री को । किम्तीन वार । अनुमार्टिमार्जन करे । + चन्चौर । + इमम्-इस भागे + मंन्त्रम्-मन्त्र को । + पठेत-पढ़े । विष्णु:- विष्णुदेव । योनिम्तेरी योनि को। कएपयतुपुत्रोत्पत्ति के लिये समर्थ करे । त्वमार्गदेव । रूपाणि-मेरे पुत्र के प्रत्येक अङ्ग के रूप को । शितु-देवे । प्रजापतिः प्रजापति । + त्वयि-तेरे में । श्रासिञ्चतु-गर्भ को स्थापन करे यानी गर्भ गिरने न देवे । धाता सूत्रात्मा ! ते नेरै । गर्मम्- गर्भ को । दधातु-धारण करे ग्रानी गिरने न देवे । सिनीवालि हे दर्शदेवदा ! । गर्नम्-इस सी के गर्भ को । धेहि-रख यानी गिरने न दे। पृथुन के स्तुति की गई है जिसकी ऐसी । + सिनीवालि हे सिनीवाली देवी !। गर्भम् उस मेरी स्त्री के गर्भ को । धेहि-रख यानी रक्षा कर । पुष्करनजी कमल की माला को धारण किये हुये । देवी प्रकाशमान । अश्विनी सूर्य चन्द्र । ते-तेरे । गर्भम् गर्भ को । श्राधत्ताम्-स्थापन करें यानी गिरने न देव । भावार्थ । हे सौम्य ! तत् पश्चात् स्त्री से कहे कि, हे द्यौ और पृथिवी के गुणों को धारण करनेवाली स्त्रो! हम तुम अलग अलग हों, ऐसा कहकर पति स्त्री से अलग होजाय, फिर स्त्री में प्रजनन इन्द्रिय को रख कर मुख से मुख मिलाकर उस अनु. कूल स्त्री का तीन वार मार्जन करे, और आगेवाला मन्त्र पढ़े, "विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु यासिञ्चतु प्रजापतिर्धाता गर्भ दधातु ते गर्भ धेहि सिनीवालि गर्भ धेहि पृथुष्टु के गर्भ ते अश्विनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ" जिसका .