७७० बृहदारण्यकोपनिषद् स० पृथिवी-पृथिवी । अग्निगर्भासग्नि करके गर्भवाली है। यथा जैसे । द्यौः द्यौ । इन्द्रेण-इन्द्र करके । गर्भिणी- गर्भवती है । यथासे । वायुः वायु । दिशाम्-दिशामों का । गर्भ:-गर्भ है। एवम इसी प्रकार । ते-तेरे । गर्भम् गर्भ को । असोबह । + अहम् में । दधामि-स्थापित करता हूँ । इति-ऐसा कहे । भावार्थ । हे सौम्य ! यौ और पृथिवी दोनों प्रकाशरूप अरणि हैं जिन करके जैसे सूर्य और चन्द्रमा पूर्वकाल में गर्भ को मन्थन करते भये वैसेही दशवें मास में पुत्र उत्पन्न होने के लिये तेरे उस गर्भ को हम दोनों स्थापित करें और जैसे पृथिवी अग्नि करके गर्भवती है, जैसे चौ इन्द्र करके गर्भवती है, जैसे दिशा वायु करके गर्भवती है, उसी प्रकार वह मैं तेरे गर्भ को स्थापित करता हूं ॥ २२ ॥ मन्त्रः २३ सोयन्तीमद्भिरभ्युतति । यथा वायुः पुष्करणी समिङ्गयति सर्वतः एवा ते गर्भ एजतु सहाचैतु जरा- युणा । इन्द्रस्यायं वनः कृतः सार्गलः सपरिश्रयः । तमिन्द्र निर्जहि गर्भेण सावरा सहेति ॥ पदच्छेदः। सोप्यन्तीम्, अद्भिः,अभ्युक्षति, यथा, वायुः, पुष्करणीम् , समिङ्गयति, सर्वतः, एवा, ते, गर्भः, एजतु, सह, अवैतु, जरायुणा, इन्द्रस्य, अयम् , ब्रजः, कृतः, सार्गलः, सपरिश्रयः, तम्, इन्द्र, निर्जहि, गर्भेण, सावराम्, सह, इति । .
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