अध्याय.१ ब्राह्मण ३ ६५ ज्ञान से । मा=मुझे । अमृतम्-पारमार्थिक कर्म को और पारमार्थिक ज्ञान को । गमय-प्राप्त कर । इति इसी प्रकार । एतत् एव इस बात को भी। + मंत्र:-मंत्र । आह-कहता है कि उद्गाता . ऐसा कहै । मान्मुझे । अमृतम्-सव कर्मों से मुक्त । कुरु-कर । च-ौर । तमसान्तम से । मा-मुझे । ज्योति ज्योति को । गमय इति: प्राप्त कर । तमःन्तम पदार्थ । वै-निश्चय करके । मृत्युः- अज्ञान है क्योंकि अज्ञान मरण का हेतु होता है। चार । ज्योति प्रकाश । अमृतम्-श्रमर होने का कारण तस्मात्-उसी । तमसा-मरण हेतु प्रज्ञान से । मान्मुझे। अमृतम् दैवस्वरूप को। गमय प्राप्त कर । इति इसी प्रकार । एतत् एव इस बात को भी। + मंत्र-मंत्र । आह कहता है कि उद्गाता ऐसा कहै। माम्मुझको। अमृतम्-दैवस्वरूप । कुरुपना दे । मृत्योः मृत्यु से । मा-मुझे । अमृतम्-अमरत्व को । गमय इति प्राप्त कर दे । अत्रइसमें । तिरोहितम् इच- पहिले दो मंत्रों की तरह छिपा हुश्रा अर्थ । न-नहीं। अस्ति- है अर्थात् मंत्र का अर्थ स्पष्ट है । अथ-अब इसके पीछे । इतराणि-ौर । यानि जो । + अवशिष्टानि-बचे हुये । + नव-नौ । स्तोत्राणि-पवमान स्तोत्र हैं । तेषु + प्रयुक्तषु + सत्सु-उनके पढ़ने पर । + उद्गाता-उद्गाता । श्रात्मने- अपने लिये । अन्नाद्यम् भोज्य अन्न का । आगायेत्-गान करे। उ-और । तस्मात्-इसलिये । साम्बही । एषः यह एवंवित्-प्राणवेत्ता । उद्गाता-उद्गाता । यम्-जिस । कामम्-पदार्थ की । कामयेत इच्छा करे । तम्-उसी । वरम् - पदार्थ को । तेषु + प्रयुक्तषु +सत्सु-उन्हीं पवमान स्तोत्रों को पढ़ते हुये । वृणीतम्बरदान माँगे ।+ हि-क्योंकि । +उद्गाता- 1
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