पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/८२

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। 1 वृहदारण्यकोपनिषद् स० उद्गाता । श्रात्मने-अपने लिये । वाम्योर । यजमानाय वा यजमान के लिये । यम्-जिम । कामम पदार्थ को । कामयते- चाहता है । नम्-उसको । श्रागायनि-गान करके प्राप्त करना है। चौर । तत् हन्बही । एनन्या प्राण ज्ञान यानी समयानु- सार स्वरों का ऊपर नीचे ले जाना श्रादिक ज्ञान । लोकजिन%D लोक के विजय का साधन । एवं अवश्य । + अस्तियः जो। एतत्-इम । साम-माम को । एवम् हम प्रकार चंद- जानना है। नस्य-दमको । एव निश्चय काय । यालोक्य- तायाः मुक्ति के लिये । पाशा प्रार्थना । नन्नहीं। अग्नि- है यानी वह अवश्य मुन हो जाता है। भावार्थ। हे सौम्य ! अव पवमान नाम स्तोत्रों की घटना कही जाती है, जब प्रस्तोता ऋत्विज साम का गान प्रारम्भ करता है तब उद्गाता यजुर्वेद के तीन मंत्रों का जप निन. प्रकार करता है । हे मंत्र ! तू मुझे असत् से सत् को पहुंचा दे, हे मंत्र ! तू मुझे तम से प्रकाश को पहुँचा दे, ६ मंत्र : मुझे मृत्यु से अमरत्व को पहुँचा दे इन तीनों मंत्रों में जो कुछ अर्थ कहा गया है उसी को यह ब्राहमण ग्रंथ भी नीचे लिखे हुये प्रकार कहता है, अमत् पदार्थ निश्चय करो मृत्यु है यानी व्यावहारिक कर्म और व्यावहारिक ज्ञान है, और सत् पदार्थ पारमार्थिक कर्म और पारमार्थिक ज्ञान है, हे मंत्र ! तिस व्यावहारिक कर्म और व्यावहारिक ज्ञान से मुझे पारमा- र्थिक कर्म और पारमार्थिक ज्ञान को प्राप्त कर, और मंत्र ऐसा भी कहता है कि उद्गाता सब कमों से मुक्त हो जाता है और तमरूपी अज्ञान से प्रकाशरूपी ज्ञान को प्राप्त होता - 1