- बृहदारण्यकोपनिषद् स० अथ, यानि, इतराणि स्तोत्राणि, तपु, आत्मने, अन्नाद्यम् , आगायत् , तस्मात्, उ, तेपु, वरम् , वृणीत, यम् , कामम् , कामयेत्, तम् , सः, एपः, एवंवित्, उद्गाता, यात्मने, वा, यजमानाय, वा, यम् , कामम् , कामयते, तम्, आगायति, तत्, ह, एतत् , लोकजित् , एव, न, ह, एव, आलोक्यतायाः, आशा, अस्ति, यः, एवम् , एतत्, साम, वेद ।। अन्वय-पदार्थ । अथ अव । अतः यहाँ से । पवमानानाम् एव-पवमान स्तोत्रों की ही । अभ्यारोहा श्रेष्ठता । कथ्यते-कही आती है। चै खलु-निस्सन्देह । यत्र-जिस समय । सा वह यज्ञ प्रसिद्ध प्रस्तोता-प्रस्तोता ऋत्विज सामसाम का। प्रस्तौति-प्रारम्भ करता है । तत्र-तव पहिले । सामवह प्रस्तोता । प्रस्तुयात्- साम का घारम्भ करे । चौर । एतानि-यजुर्वेद के तीन मंत्रों को । उद्गाता-उद्गाता । + इति-इस प्रकार । जपेत्सपे असतः असत् से । मान्मुझे। सत्-सत् को । गमय पहुँचा दे। तमसा-तम से ! मान्मुझे। ज्योतिः ज्योति को । गमय- पहुँचा दे । मृत्योः मृत्यु से । मा-मुझे । अमृतम्अमृत को। गमय इति-पहुँचा दे इस प्रकार । + एपाम्न्इन तीन मंत्रों को।+ अर्थ-धर्थ के विषय में । यत्-जो कुछ । कथितम् कहा गया है। + तत्-उसी को। + ब्राह्मणम् ग्रह ब्राह्मण अन्य भी । + निन्नप्रकारेण निम्नप्रकार I + व्याचऐव्याख्या करता है । असत्-असत् पदार्थ । वै-निश्चय करके । है यानी व्यावहारिक कर्म और व्यावहारिक ज्ञान है 1+ च% मृत्यु मृत्यु:- और । सत्-सत् "पारमार्थिक कर्म पारमार्थिक ज्ञान है" । + तस्मात् उस । मृत्योःच्यावहारिक कर्म और व्यावहारिक
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