अध्याय १.ब्राह्मण:४ अन्वय-पदार्थ। तत् ह वही । इदम्-यह जगत् । तहि सृष्टि के आदि में । अव्याकृतम्-अव्याकृत थानो नाम रूप की उपाधि से रहित । आसीत्-था। तत् एत्र-सोई ।, नामरूपाभ्याम् नाम रूप करके । व्याक्रियत-व्याकृर्त यानी नामरूपघाला होता भया । + च पुना और फिर । अयम्वही जीवात्मा। असौनामा उस नामवाला | च-और । इदंरूप: इस रूपवाला । इति ऐसे होकर । व्याक्रियतेविकृति को प्राप्त होता भया। तत्-तिसी कारण । इदम्-इस जगत् में । एतहि-प्रत्र । अपि भी। एव-नवश्य । नामरूपाभ्याम् नाम रूप करके । अयम्-यह जीवात्मा। असौनामा इदंरूपः इति इस नामवाला और उस रूपवाला होकर । + व्याक्रियते-विकार को प्राप्त होता है । + चोर । सःवही । एप:-यह जीवात्मा । इह इस देह में । अानखाग्रेभ्यः-नख से लेकर शिर ,तक । प्रविष्टः प्रविष्ट है । यथा जैसे । तुरः-छुरा । क्षुरधाने नाई की पेटी में । अवहितः प्रविष्ट । स्यात्-रहता है । वा-अथवा । + यथा-जैसे । विश्वम्भर अग्नि । विशम्भर-कुलाये= काष्ठादिक में + अवहितः प्रविष्ट । स्यात्-रहती है। परन्तु तोपरन्तु उस छुरे और अग्नि को। + जनाः लोग । न-नहीं । पश्यन्ति-देखते हैं । साम्यह जीवात्मा । हि-निश्चय करके । अकृत्स्न: अपूर्ण है। + यःजो । + एकाङ्गे एक अङ्ग में + वसतिम्घास करता है।+सावह जीवात्मा । + यदा- जब । प्राणन् एवम्प्राण का ही व्यापार करनेवाला ! + भवति- होता है । + तदा-तब । प्राणःप्राण के । नाम नाम से । भवति-कहलाता है ।+ यदान्जव । वदनचौलनेवाला । +भवति होता है ।+ तदा तब । वाक्वाक् के नाम से। .
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