पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/१०५

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बेकन-विचाररत्नावली।

नियस यदि चाहता तो वह अपने दूसरे स्वामी फ्रांसके राजा ग्यारहवें लिवी–के विषय में भी यही बात कहता, क्योंकि उसको भी उसकी संकोच वृत्ति ने, बहुत सताया था। "हृदय को मत भक्षण करो"। (अर्थात त्रासदायक बातों को मनका मनही में न रहने दो) इस प्रकारका एक दृष्टान्त पिथागोरस[१]ने दिया है। यह यद्यपि स्पष्ट नहीं है, तथापि सत्य है; क्योंकि हृदय को हलका करने के लिए जिनके कोई मित्र नहीं है, उनको यदि कोई बुरा नाम देना हो तो "हृदय भक्षक" ही कहना युक्त है। परन्तु एक बात बड़ीही विलक्षण है उसको कहकर मित्रताके प्रथम फलके विषय का लेख हम समाप्त करैंगे। वह यह है कि मित्र के पास हृदयको हलका करनेसे परस्पर विरुद्ध दो कार्य होते हैं। अर्थात् मित्रसे सुख की बात कहनेसे वह सुख दूना होजाता है; और दुःख की बात कहनेसे वह दुःख आधा रहजाता है। मित्रको सुख संवाद सुनानेसे जिसका सुख वृद्धिगत नहीं होता, किम्बा दुःख की वार्त्ता कहनेसे जिसका दुःख न्यून नहीं होता ऐसा मनुष्यही नहीं है। योरपके कीमिया करनेवालोंका कथन है कि पारस पत्थरमें परस्पर विरुद्ध गुण हैं,परन्तु उनसे शरीरको अपाय नहीं होता; उलटा लाभ होता है। इसी प्रकार मनकी बात मित्रसे कहनेसेभी मन कलुषित नहीं होता; प्रफुल्ल होता है। कीमिया वालों की बात जाने दीजिये; व्यवहार मेंभी इस बात के स्पष्ट उदाहरण देख पड़ते हैं। संयोग से पदार्थों का स्वाभाविक गुण बढ़ता है और दृढ होता है, परन्तु बलपूर्वक उनका वियोग करने से वे मन्द तथा अशक्त होजाते हैं। मन की भी यही दशा है॥


  1. ग्रीसमें पिथागोरस नामक एक अद्वितीय तत्त्वज्ञ होगया है। ईसवी सन् के लगभग ५०० वर्ष पहले यह विद्यमान् था। २२ वर्ष तक मिश्रदेशमें रहकर नाना प्रकारकी विद्यायें इसने सीखीथी। परमाणु से सृष्टि उत्पन्न हुई है और उसका कर्ताभी कोई अवश्य है–यह इसका सिद्धान्त था। सूर्यबीचमें है और समग्र ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं–यह उपपत्ति इसीकी कीहुई है। यह मांसाहारी नथा। योग में भी यह कुशलथा; हिंस्रजीवोंको यह अपने वशमें कर लेताथा और एकही समयमें कई स्थानों में उपस्थित होजाता था।