पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/११०

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मैत्री।


हुआ तो भी उसके कथनका अनुसरण करनेसे धोखा और अपाय होना संभव है। ऐसे परामर्शमें गुण और दोष दोनों मिले रहते हैं। जो वैद्य रोगी की प्रकृतिसे परिचित नहीं है, वह यद्यपि चिकित्सामें प्रवीण भी हुआ, और यद्यपि जिस रोगके लिये वह बुलाया गया है उसको उसने अच्छा भी करदिया, तोभी सम्भव है, कि, औषधोपचार करनेसे शरीरमें एक दूसराही रोग वह उत्पन्न करदेवै और तद्वारा रोगीकी मृत्युका कारण होवै। जो पूर्णतया परिचित नहीं हैं उनके परामर्श में भी ऐसाही भय रहता है। परन्तु अपने मित्रको अपना सारा वृत्त इत्थंभूत विदित रहता है; इसलिए एक काम करनेसे दूसरा काम न बिगड़ने देनेके विषयमें वह सावधान रहता है और कभी अनुचित परामर्श नहीं देता। अतः फुटकर, ऐसे वैसे मनुष्योंसे सलाह न लेनी चाहिए; लेनेसे कामकी सुव्यवस्थातो होती नहीं, चित्त उलटा क्षुब्ध होजाताहै और परिणाम हितावह नहीं होता।

मैत्रीके दो उत्कृष्ट फलोंका उल्लेख होचुका। इन दोमेंसे एक, मनोविकारोंको उच्छृंखल होनेसे बचाना है और दूसरा, सदसद्विचार बुद्धिको सहायता पहुंचाना है। अब तीसरे फलका माहात्म्य सुनिए। यह फल अनारके समान है; अनार जिसमें अनेक दाने होतेहैं। इस कथनसे हमारा यह अभिप्राय है, कि सब कामोंमें और सब प्रसंगोंमें मित्रसे साहाय्य मिलता है और मित्रका उपयोग होता है। यदि यह देखना हो, कि कहां कहां, और किस किस समयमें, कौन कौन काम मित्रसे निकलते हैं, तो मनुष्यको चाहिए कि वह इसका विचार करै, कि ऐसी कितनी बातैं हैं जो वह अकेले नहीं कर सकता। ऐसा करनेसे यह विदित हो जायगा कि पुरातन लोग मित्र की महिमा बहुत कम समझते थे। यही कारण है जो उन्होंने "मित्र अपनाही एक अन्य आत्मा है" इस प्रकार मित्र का लक्षण