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बेकन-विचाररत्नावली।


अधिक प्रखरता आती है। जिसको देखकर मत्सर उत्पन्न होता है उस मनुष्य के गुण, ऐसे समय में, चारों ओर बाहर प्रकाशमान देख पड़ते हैं; इसी से उनपर मत्सर का प्रचंड आघात होता है। ऐसी ऐसी चमत्कारिक बातों का यथास्थान वर्णन करना अनुचित नहीं होता, तथापि इस विषयको अब हम यहीं छोंड, यह देखना चाहते हैं कि दूसरे का मत्सर करने की ओर किन मनुष्यों की विशेष प्रवृत्ति होती है, और कौन मनुष्य मत्सर किए जाने के अधिक पात्र होते हैं; तथा सार्वजनिक और व्यक्ति विशेष विषयक मत्सर में क्या अन्तर है।

गुणहीन मनुष्य गुणवान् को देखकर असूया करता है। मनुष्य का यह स्वभावही है कि वह सदैव अपना भला और दूसरे का बुरा चाहता है। जिसमें अपना भला करनेकी शक्ति नहीं है, वह दूसरे का बुरा होते देख समाधान पाता है। और जो मनुष्य दूसरे के सद्गुणों को स्वयं उपार्जन करनेकी कोई आशा नहीं देखता,वह उसके गुणोंका अपलाप करके, अपनी और उसकी समता सिद्ध करने का यत्न करता है।

जो मनुष्य किसी न किसी काममें सदैव लगा रहता है और दूसरे के व्यवसायोंका अनुसन्धान किया करता है, वह बहुधा असूयारत होता है। कारण यह है, कि जो इतना घटाटोप करके औरों के कामकाजके विषय में ज्ञान सम्पादन करता है वह इस लिए नहीं सम्पादन करता कि उसका औरोंके काम काज से कुछ सम्बन्ध है अथवा उस ज्ञान से उसको कुछ विशेष लाभ है। नहीं, इस प्रकार दूसरों के विषय में पूंछ पांछ करके और उनकी भली बुरी स्थितिको देखकर मत्सरग्रस्त मनुष्यको नाटक देखने कासा आनन्द आता है। जिसे "न उद्धव से लेना और न माधव को देना" है, उसे दूसरेका मत्सर करने के लिए विशेष कारण नहीं ढूंढे मिलता। मत्सर एक ऐसा चंचल मनोविकारहै कि इतस्ततः भ्रमण किए बिना उसे कलही