राजकीय पुरुषोंका, लोकमें, जो मत्सर होता है, उस विषयमें, अब कुछ कहना है। व्यक्ति विशेष का मत्सर करनेसे कुछभी लाभ नहीं होता; परन्तु राजकीय पुरुषोंका मत्सर करनेसे लाभ होता है। अत्युच्च पद प्राप्त होनेसे, राजकीय अधिकारी जब अतिशय उन्मत्त हो उठते हैं, तब उनका उन्माद मत्सरसे आच्छादित हो जाता है। मत्सर के कारण, उन लोगोंकी दीप्ति भली भांति नहीं चमकने पाती। ऐसे उद्दंड अधिकारियोंको, मर्य्यादाके बाहर न जाने देनेके लिए, मत्सर लगाम का काम देता है। अर्वाचीन भाषाओं में मत्सर का दूसरा नाम असन्तोष है। असन्तोषके विषयमें हमको जो कुछ कहनाहै वह हम उस निबन्ध में कहैंगे जिसमें हम 'राजा और प्रजामें परस्पर विरोध' का वर्णन करना चाहते हैं। असन्तोष एक प्रकार का सांक्रामक (स्पर्शजन्य) रोग है। जैसे सांक्रामक रोग सब ओर फैलकर स्वस्थ मनुष्योंके भी ऊपर अपना प्रभाव प्रकट कर के उनके शरीरमें विकार उत्पन्न करदेते हैं, वैसेही असन्तोषभी प्रादुर्भूत होकर, सारे राज्य में फैल जाता है और उसके वशीभूत होनेसे प्रजा को राजा के अच्छे भी काम बुरे देख पड़ते हैं। राजाने बीच बीच में यदि उत्तम भी काम किए तोभी मत्सर के कारण कोई उसकी प्रशंसा नहीं करता। लोग उलटा यह कहते हैं, कि प्रजा में जो असन्तोष उत्पन्न हुआ है उसी से भयभीतहोकर इस राजाने यह काम किया है; दृढ़ निश्चय तो इसमें हई नहीं। साधारणतया देखते हैं कि सांक्रामक रोग से डरनेसे जैसे उसे कोई घरमें बुला लाता है, वैसे ही असन्तोषसे डरने से राजाओंको और भी अधिक आपत्ति भोगनी पड़ती है।
सार्वजनिक मत्सर, प्रमुख अधिकारी और कामदार लोगोंको विशेष पीड़ा पहुँचाता है; स्वयं राजा अथवा राज्य के लिए वह इतना अपाय