भंगकरके, ऐसे ऐसे मनुष्य, अपना महत्व सदैव सबको दिखलाया करते हैं। एतादृश उद्धट व्यवहार किए बिना उनको कलही नहीं पड़ती। इसीसे लोग उनका अतिशय मत्सर करते हैं। परन्तु बुद्धिमान् लोग, कभी कभी, ऐसे ऐसे विषयों में, जो विशेष महत्वके नहीं हैं, जान बूझकर अपना पराभव दिखाते हैं और तद्द्वारा लोगों का मत्सर शान्त करते हैं। तथापि यह सत्य है कि अभ्युदय होनेपर जो मनुष्य सरल और निष्कपट वर्त्ताव करता है, हां, परंतु, ऐसे वर्त्ताव में व्यर्थ आत्मश्लाघा और गर्वका सञ्चारन होनाचाहिए, उसका लोकमें उतना मत्सर नहीं होता जितना विश्वासघातक और कपटशील बर्ताव करने वाले का होता है। निष्कपट और सरल व्यवहार करनेवाला मनुष्य जानता है कि यह महत्व जो मुझे प्राप्त हुआ है वह चिरस्थायी नहीं है वह यह भी जानता है कि इस वैभव के उपभोग करनेकी मुझमें योग्यता भी नहीं है। इसीसे वह औरों का असूयाभाजन नहीं होता।
दो एक बातैं और कहकर इस विषय को समाप्त करैंगे। पहले कह आए हैं कि मत्सर में जादूका कुछ अंश मिला रहताहै। अतः जादूका प्रभाव दूर करनेके लिए जो उपाय किया जाता है वही उपाय मत्सरको दूर करनेके लियेभी करना चाहिए। वह उपाय अपने ऊपरके मत्सर को उतारकर दूसरेके ऊपर रखदेना हैं। इसी लिए बडे २ लोगोंमें जो बुद्धिमान् होतेहैं वे किसी न किसीको, चतुराई से अग्रेसर करके, उसीपर मत्सर का प्रभाव डालते हैं। ऐसा करनेसे उनको मत्सरकी बाधा नहीं होती। कामदार, मित्र, सहकारी और नौकर चाकर इत्यादि लोगोंका इस काममें उपयोग होता है। इसके लिए उद्धट और साहसी स्वभाव वाले मनुष्य सहजही मिल जाते हैं। ऐसे मनुष्योंको अधिकार और काम भर मिलना चाहिए; फिर, न वह मत्सरसे डरते हैं न और किसीसे।