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(७)
बदला लेना।
बदला लेना ३.

उपकारकमायतेर्भृशं[१] प्रसवः कर्मफलस्य भूरिणः।
अनपायि निबर्हणं द्विषां न तितिक्षासममन्यसाधनम्॥

किरातार्ज्जुनीय।

बदला लेना एक प्रकारका असभ्य न्याय है। ऐसे न्यायकी ओर मनुष्य की प्रवृत्ति जितनी अधिकहो विधि (कानून) की उतनीही अधिक उसकी प्रतिबंधकता करनी चाहिये, क्योंकि पहिलाअपकार केवल विधि की सीमा का अतिक्रमण करता है परन्तु उस अपकारका बदला लेने जाना मानों विधि की सत्ताहीको न मानना है। यह सत्य है कि, बदलालेनेसे मनुष्य अपने शत्रुकी बराबरीका होजाता है परन्तु बदला न लेकर तत्कृत अपराधको क्षमा करनेसे वह उसकी अपेक्षा श्रेष्ठताको पहुँचजाता है, क्योंकि क्षमा करना बड़ोंका काम है। सालोमन[२] ने यह कहा है कि, "दूसरोंके अपराधको चित्तमें न लाना मनुष्यके लिये अत्यन्त भूषणास्पद है"। जो हुआ सो हुआ; गई हुई बात पुनः पीछे नहीं आती; अतः बुद्धिमान् लोग वर्त्तमान और भविष्य बातोंहीका चिन्तन करते हैं; गत बातोंका नहीं। गतका विचार करते बैठना मानो अपने बहुमूल्य समय को अकारण नष्ट करना है।

ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जो दूसरेका अपकार बिना किसी कारणके करताहो। अपकार करनेमें उसका कुछ न कुछ अभीष्ट अवश्य रहताही है; चाहै वह प्राप्ति हो, चाहै मनोरंजन हो, चाहै भूषण हो


  1. भविष्यत् में अधिकाधिक उपकारक होनेवाली, कार्यसिद्धिके उत्तमोत्तम फल की देनेवाली, स्वयं कभी भी नाश न होकर शत्रुओंका नाश करनेवाली क्षमाके समान अन्य साधन संसारमें नहीं है।
  2. सालोमन जेर्युशलेम का राजाथा। इसने ईसवी सन् के पहिले ९७५ से १०१५तक राज्य किया। यह एक अद्वितीय चतुर, न्यायी और महात्मा था। तत्त्वशास्त्र का भी इसे उत्तम ज्ञान था।