सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६)
बेकन-विचाररत्नावली।


मुक्त करनेके लिये जब हरक्यूलिस[] बद्धपरिकर हुआ तब उसने इस प्रचंड महासागरको मृत्तिकाकी नौकापर आरोहण करके पार किया, जिससे यह अभिप्राय निकलता है कि, दृढ़ संकल्प करनेसे इस पंचभूतात्मक नश्वर शररिहीके द्वारा मनुष्य संसाररूपी समुद्रके पार जाने में समर्थ होसकता है। सम्पत्तिमें परिमिताचरण रखना सद्गुण है और विपत्तिमें धैर्य धरना भी सद्गुण है। परन्तु इन दोनों से द्वितीय सद्गुण अर्थात् विपत्तिमें धैर्य धारण करना नीतिशास्त्रवालोंने श्रेष्ठ माना है। सम्पत्तिकालमें अनेक भयप्रद और अनिच्छित बातोंका होना असम्भव नहीं और आपत्तिकालमें आशा और समाधान कारक अनेक बातोंका होनाभी असम्भव नहीं।

हम देखते हैं कि, साधारण बेल बूटा निकालने तथा जरीका काम करनेमें काले और सादे कपड़ेके ऊपर रंगीन काम जैसा शोभा देताहै वैसा चमकीले कपड़ेके ऊपर काला काम नहीं शोभा देता। अतएव अन्तःकरणके आनन्दित होनेकी कल्पना नेत्रोंके आनन्दितहोनेके प्रकारको देखकर करनी चाहिये। सत्य तो यह है कि, सद्गुण सुगन्धित वस्तुके समान हैं। जैसे बहुमूल्य सुगन्धित वस्तुको जबतक अग्निमें नहीं डालते अथवा उसे नहीं तोड़ते तबतक उसका सुवास बाहर नहीं निकलता, वैसेही जबतक विपत्ति नहीं आती तबतक सच्चे सद्गुणका होना अथवा न होनाभी नहीं जाना जाता। सम्पत्तिमें दुर्गुण भलीभांति दिखलाई देते हैं और विपत्तिमें सद्गुण भलीभाँति दिखलाई देते हैं।


  1. हरक्यूलिस भी ग्रीसदेशमें एक महापराक्रमी पुरुष होगया है। मरनेके अनन्तर इसको लोगोंने देवताओंकी कक्षामें स्थान दिया और आदरभी इसका वैसाही किया।