सम्बन्धमें कुत्तेका उदाहरण लीजिए। कुत्ता जब यह देखता है कि मेरी सहायता कोई मनुष्य कर रहा है तब वह अपूर्व शौर्य दिखलाता है। कुत्ते के लिए मनुष्यही ईश्वर है। मनुष्यको वह सर्वश्रेष्ठ मानना है। यह बात स्पष्ट है कि कुत्ता यदि मनुष्यको अपनेसे श्रेष्ठ और अपने संरक्षण करनेके लिए समर्थ न समझता तो वह इतना शौर्य कदापि न दिखा सकता। इसीप्रकार मनुष्य, जब अपनी रक्षाका भार ईश्वर पर रखता है और यह समझता है कि उसीकी कृपासे मेरा कल्याण होगा तब उसमें एक प्रकारके विलक्षण बल और विश्वास का उदय होता है। ईश्वर में आस्था हुए बिना एतादृश बल और विश्वास नहीं आसकता। निरीश्वर मत सब प्रकारसे निंद्य है। उसका अवलंबन करनेसे मानुषिक दुर्बलतासे मुक्त होकर मनुष्यको अपने आत्माकी उन्नति करनेकी आशासे हाथ धोना पड़ता है। इस विषयमें जो नियम व्यक्ति विशेषके लिए चरितार्थ होता है वही नियम जाति विशेषके लिए भी होता है। प्राचीन समयमें रोमन लोग जितने उदार और मनस्वी थे उतने और कोई न थे। उन लोगोंसे सिसरो क्या कहता है सो सुनिए। वह कहता है:–"हे रोमवासी! हम लोग अपने मुखसे अपनी चाहे जितनी प्रशंसा करैं, हमैं कोई रोक नहीं सकता; परन्तु एक बात स्मरण रखने योग्य है। वह यह है कि हम लोगों ने जो स्पेनवालों को परास्त किया वह सैन्यबलसे नहीं; गॉल लोगो को जो विजय किया वह बाहु बलसे नहीं; पीनी लोगों को जो वशमें कर लिया वह युद्ध कौशल से नहीं; ग्रीक लोगों को जो पराजित किया वह युक्ति से नहीं; और जाने दीजिए स्वयं इटैलियन और लैटिन लोगों पर भी जो हमने अपनी सत्ता चलाई वह वे और हम एकजातीय तथा एकदेशीय हैं इस कारण से नहीं; किन्तु इस कारण से कि औरौं की अपेक्षा हममें ईश्वर भक्ति अधिक है; औरौं की अपेक्षा हममें धार्म्मिकता अधिक है, औरो की अपेक्षा हमको इसका
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