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सौजन्य और परोपकार


ज्ञान अधिक है कि यह संसारचक्र केवल ईश्वरही की आज्ञासे चलरहा है। इन्हीं कारणों से, हम लोग औरौं के ऊपर आधिपत्य करने में समर्थ हुए हैं"।


सौजन्य और परोपकार।

वेदनं[१] प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचो वाचः।
करणं परोप रणं येषां केषां न ते वंद्याः ॥ १॥

सुभाषितरत्नभाण्डागार।

मनुष्यों को दुःखित देख उनके दुःखों के परिमार्जन करने की भावनाही सौजन्य का सर्वोत्तम लक्षण है। इसी को–अर्थात् दूसरों का कल्याण चिन्तन करने वाली बुद्धि को–ग्रीक लोगों ने 'भूतदया' के नाम से उल्लेख किया है। एतादृशी सद्बुद्धि अथवा सौजन्य के लिए 'भूतदया'–यह नाम विशेष शोभा देता है; 'मनुष्य धर्म्म' अथवा और कोई नाम देने से उसमें न्यूनता आजाती है। परोपकार बुद्धि की वासना के अनुसार बर्त्ताव करने का अभ्यास पड़ते पड़ते पूरी पूरी सुजनता उदित होती है। मनुष्य में जितने सद्गुण और जितने उच्चधर्म्म हैं उन सबमें सौजन्य श्रेष्ठ है। कारण यह है कि सौजन्य ऐश्वरीय गुण है। मनुष्य में यदि सौजन्य न होतो वह केवल उदरपोषक उपद्रवी और दरिद्री जीव है। ऐसे मनुष्य में और छोटे छोटे कृमिकीटकादिकों में विशेष अन्तर नहीं। वेदान्त शास्त्र में दयाकी अतिशय महिमा वर्णन कीगई है। दयाही का दूसरा नाम सौजन्य है। सौजन्य में चाहै और किसी प्रकारकी भूल होजावै परन्तु मर्यादा के


  1. मुख जिनका प्रसादसे परिपूर्ण है, हृदय जिनका दयालु है, वाणी जिनकी सुधामयी है, कर्तव्य कर्म्म जिनका केवल परोपकार है–ऐसे सत्पुरुष किसके वन्दन करने योग्य नहीं?