उसीके दियेहुए दुःखको क्या हमें न सहन करना चाहिये? करनाही चाहिये। बस, इसी नियमका प्रयोग मित्रों के विषयमेंभी करना उचित है।
सत्य तो यह है कि, जो मनुष्य अपने प्रतिपक्षीसे बदला लेनेके विचार में सदैव निमग्न रहता है वह अपनेही घाव को, जो योंही छोड़ देनेसे कुछ दिनमें सूखकर आपही आप अवश्य अच्छा होजाता, मानों नया बनाए रखता है। सार्वजनिक विषयमें बदला लेनेसे बहुधा देशका कल्याण होता है जैसे सीजर[१], परटीनैक्स[२] और फ्रान्सके तृतीय हेनरी इत्यादिकी मृत्युसे हुआ है; परन्तु व्यक्तिविशेषके वैरकी बात वैसी नहीं है। उससे कल्याण नहीं होता। कल्याण तो दूररहा बदला लेनेमें तत्पर रहने वालोंकी दशा डाइनकीसी होजाती है। अर्थात् जैसे डाइन जबतक जीती है तबतक दूसरोंको पीड़ित करती है और अन्त में स्वयं दुःख भोगती है वैसेही वे लोग भी दूसरोंको दुःख देकर अपने आपको भी दुःखित करते हैं।
यदर्ज्यते[३] परिक्केशैरर्जितं यत्र भुज्यते।
विभज्यते यदन्तेन्यैः कस्य चिन्माऽस्तु तद्धनम्॥
सुभाषितरत्नाकर।
धन, व्यय करनेहीके लिये है; परन्तु हां, सत्कार्य और यशः पद-
- ↑ जूलियस सीजर रोम का पहिला सार्वभौम राजा था। यह महा पराक्रमी था। इसने समग्र इटली देशको ६० दिनमें विजय किया। इसके सभासदोंने जिनमें इसका मित्र ब्रूटस भी था, इसकी चढ़ती कलाको सहन न करके इसे ईसवी सन् के ४४ वर्ष पहिले मारडाला। उस समय इसका वय ५६ वर्षका था।
- ↑ परटीनैक्स भी रोमका एक सार्वभौम राजाथा। यह एक निकृष्ट वंशसे उत्पन्न हुआथा। ८७ दिन राज्य करनेके अनन्तर सन् १९३ में इसके सैनिकोंने इसकी की हुई सुधारणासे अप्रसन्न होकर इसे मारडाला। यह बड़ाही सद्गुणी राजाथा।
- ↑ जिसके उपार्जन करनेमें अत्यन्त कष्ट सहन करना पड़ताहै; परन्तु कष्ट सहन करके भी जिसका उपभोग नहीं कियाजाता; अतएव अन्तमें जिसे दूसरेही लेजाते हैं, ऐसे धनके होनेसे न होनाही अच्छा है।