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पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/१९

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बेकन-विचाररत्नावली।


ऐसा भासित होता है कि ये सब बातें यह मनुष्य अपनी शालीनताके कारण कह रहा है तथापि एतादृश आडम्बरको प्रतिष्ठाद्योतकही समझना चाहिये। परन्तु यदि मनुष्योंके मनमें किसी प्रकार का अनुचित आग्रह उत्पन्न होगया हो और ऐसा होनेसे यदि तुम्हारे काममें प्रतिबन्ध आता हो तो प्रस्तावनाके बिना प्रतिपाद्य विषयकी आलोचना की ओर तुम्हें कदापि तत्काल न बढ़ना चाहिये। जिस स्थलमें मरहम लगाना होता है उस स्थलको पहिले सेंकते हैं तब मरहम लगाते हैं; ऐसा करनेसे मरहम भली भाँति भीतर प्रवेश करजाता है। इसीप्रकार लोगोंके चित्तका अनुचित आग्रह छुड़ानेके लिये प्रस्तावनाकी आवश्यकता पड़ती है।

काम करनेका क्रम, उसके विभाग और एक एक विभागको एक एक करके समाप्त करना त्वराका मूलसिद्धांत है। यह बात सबसे बढ़कर है; परन्तु कामके विभाग बहुत छोटे छोटे न होने चाहिये। जो मनुष्य अपने कामके विभाग नहीं करता उसका उसमें अच्छीप्रकार प्रवेश नहीं होता और जो अनेक अनावश्यक विभाग करता है वह उन सबको यथायोग्य समाप्त करनेमें समर्थ नहीं होता। अनुकूल समयमें काम करनेसे समय कम लगता है और प्रतिकूल समयमें करनेसे वायुको ताड़न करनेके समान श्रम निष्फल जाता है। कामके तीन भाग होते हैं:-कामको प्रस्तुत करना, उसके विषयमें वादविवाद करके योग्यायोग्यका निर्णय करना और अन्तमें उसे सिद्ध करना। यदि तुम्हारी यह इच्छा है कि, काम शीघ्रही समाप्त होजावे तो करे हुए विभागोंमेसे मध्यके विभागमें एकको छोड़ अनेकोंका उपयोग तुम्हें करना चाहिये; परन्तु आदि और अन्तके विभागोंमें दोही चार मनुष्यों को युक्त करना उचित है; अधिकोंको नहीं।

जो कुछ कहना है उसे लिखकर वादविवादके लिये प्रस्तुत करना चाहिये; क्योंकि, ऐसा करनेसे काम शीघ्र होता है।