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विद्याध्ययन।


चाहै अपनी सूचना अमान्यही क्यों न हों तथापि मुखाग्र कहने सुनने से निश्चित रूपमें उसे लिखलेना अधिक लाभकारी है। धूलि और राख यद्यपि दोनों क्षुद्र पदार्थ हैं; तथापि, फिर भी, राखकी खाद बनानेसे वह विशेष उपयोगमें आती है।


विद्याध्ययन ६.

मातेव[१] रक्षति पितेव हिते नियुङ्क्ते
कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्ति
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या॥

सुभाषितरत्नाकर।

विद्याध्ययनसे मन मुदित होता है; बातचीत में विशेष शोभा आती है और योग्यता भी बढ़ती है। एकान्तवास और निष्कार्यदशा में विद्याध्ययन का मुख्य उपयोग तद्वारा आनन्द प्राप्त करनेमें होता है। सम्भाषण के समय उसका मुख्य उपयोग कथन को अलंकृत करने में होता है; और सारासार विचारपूर्वक काम काजकी व्यवस्था करने के लिये उसका मुख्य उपयोग व्यवहारदक्षता सम्पादन करने में होता है। अनुभव से जिन्हों ने चातुर्य प्राप्त किया है वे काम काज अवश्य करते हैं और एक २ बात का अलग अलग विचार करके बहुधा अच्छे प्रकारभी करते हैं; परन्तु सामान्यतः योग्यायोग्य को समझना, अनेक उपयोग युक्ति प्रयोग करना और प्रत्येक भागको सुव्यवस्थित रखना विद्वानों का ही काम है।

शास्त्रचर्चा में प्रमाणसे अधिक समय व्यय करना जड़ता है; वार्तालाप में भाषण को सालंकार करने के लिए शास्त्र का अतिशय


  1. विद्या माता के समान रक्षा करती है; पिता के समान हित में तत्पर रखती है; कान्ता के समान खोदित चित्त को प्रसन्न करके सुख देती है; संम्पत्ति को बढ़ाती है; कीर्तिको दिशाओं में फैलाती है। क्या २ नहीं साधन करती? अर्थात् सभी करती है।