किसी किसी के भाषण में सत्यानुयायिनी विचार पद्धतिकी अपेक्षा कोटिकम लड़ाने का कौशल विशेष होताहै। चाहे उनका भाषण नितांत निःसारही क्यों न हो तथापि कुछ मनुष्य यह दिखलाना चाहतेहैं कि, वादप्रतिवाद करने की उनमें उत्कट शाक्तिहै। मानों विचार सरणिका ज्ञान सम्पादन करनेकी अपेक्षा कोटिक्रम लड़ानाही आधिक प्रशंसाकी बातहै! कुछ मनुष्य किसी किसी नियमित विषयको छोड़ अन्य विषयपर भाषण नहीं करते। ऐसे नियमित विषयोंपर जब वे बोलने लगतेहैं तब अच्छा बोलते हैं; परन्तु उनके पास विषयबाहुल्य न होने के कारण उनका भाषण सुनते सुनते जी ऊब जाताहै और इस प्रकारके विषयदारिद्रयका भेद खुल जाने पर वह भाषण उपहासास्पद हो जाताहै। आरंभमें अति मनोरंजक भाषणकरके क्रम क्रम से उसका संबन्ध कम करते हुए दूसरे विषयकी ओर बढ़ना सबसे योग्यताका कामहै। ऐसा करनेसे सुननेवालोंके चित्तको,नर्तकके समान, वक्ता अपनी ओर आकर्षण करलेताहै। संभाषण और वादप्रतिवाद करनेमें विषय को मनोरंजक करने के लिये समयानुकूल इधर उधरकी दो चार बातों का समावेश करना चाहिये; तर्कना करनी चाहिये; कोटिकम लड़ाना चाहिये; प्रश्नकरके स्वमतानुसार उनके उत्तर देने चाहिये; और गंभीरताप्रदर्शन पूर्वक विनोद भी करना चाहिये; क्योंकि ऐसा न करके एकही बातके पीछे पड़ना और उसीका पिष्टपेषणकरना अच्छा नहीं लगता।
विनोद करते समय इसका ध्यान रहै कि-धर्म, राजकीय प्रकरण, बड़े बड़े लोग, किसीका तत्काल प्रस्तुत कोई महत्त्वसूचक काम तथा जिसे सुनकर दया आतीहै ऐसी कोई बात-इन सबकी कदापि हँसीन करनी चाहिये। परन्तु, कुछ लोग यह समझाते हैं कि,यदि उन्होने मर्मभेदक और आक्षेपपूरित कोई विनोद न किया तो उनका बुद्धिप्राखर्य मानों निद्रित होगया-ऐसा लोग समझने लगेंगे। ऐसे