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पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/४३

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बेकन-विचाररत्नावली।

आहार, निद्रा, व्यायाम और वस्त्राभरण इत्यादिकी व्यवस्थाकी परीक्षा करके देखो कि उनमें किसी से किसी प्रकार तुम्हैं असुविधा तो नहीं होती; और यदि होती है तो धीरे धीरे उसे छोड़ देनेका अभ्यास करो। परिवर्तन इस प्रकार करना चाहिए कि यदि वह सहन न हो तो पुनर्वार छोडे़ हुए पहिले क्रम के अनुसार तुम अपनी दिनचर्या को नियमित करसको, क्योंकि जो बातैं साधारणतः मनुष्योंने अच्छी और आरोग्यकारक मान रक्खी हैं वे तुम्हारी प्रकृतिको भी हितावह होंगी यह स्थिर करना कठिन है।

आहार, निद्रा और व्यायामके समय मनुष्यको स्वस्थचित्त, प्रसन्न और प्रफुल्ल रहना चाहिए। ऐसा करने से आयु बढ़ती है। मानसिक विकारों में से असूया, उत्कटभय, मनका मनही में क्रोध, अत्यन्त गहन और क्लिष्ट शास्त्रीय मीमांसा, अत्यधिक आनन्द तथा अत्यधिक उल्लास और अनिवोदित दुःख-इन सबका, प्रयत्नपूर्वक, परिहार करना चाहिए। बहुत हँसनेकी अपेक्षा विनोदशील होना चाहिए। एकही आमोद के व्यसनी न होकर अनेक सुखप्रद पदार्थोंका सेवन करना चाहिए। जिनसे चित्तको चमत्कार और आनन्द दोनों प्राप्त हों ऐसी नई नई वस्तु देखनी चाहिए। जिनकी पर्य्यालोचना करनेसे मनोवृत्ति विकसित और उदात्त रस से आप्लुत हो जावै ऐसे ऐसे इतिहास, उपाख्यान तथा विश्ववर्णन सदृश उत्तमोत्तम विषयों का अभ्यास करना चाहिए।

ओषधियों का सेवन कभी भी न करनेसे नित्तान्त आवश्यकता होने परभी वे गुण नहीं करतीं। इसी प्रकार उन के खानेका सदैव अभ्यास रखने से भी रूग्णावस्था में वे यथायोग्य फलमदनहीं होती। ओषधि सेवन करना यदि एक प्रकार का व्यसनहीं होगया हो तो दूसरीबातहै, नहीं तो पुनःपुनःउनके सेवन की अपेक्षा ऋतु ऋतु में समयानुसार आहार में फेर फार करना उचितहै। इससे शरीर आरोग्य रहता है, और कोई पीड़ा भी नहीं होती। शरीर में कोई आकस्मिक विकार देखपड़ै तो