युवावस्थामें विशेष शोभा देते हैं। इस कक्षा में हारटेन्शियस[१] के समान पुरुषों का समावेश होताहै। कुछ इस प्रकारकेभी होते हैं जो अपने वयोमान की अपेक्षा ऊंचा उड्डान भरते हैं और विशेष भव्यता दिखाते हैं। सीपिओ[२] आफ्रिकेनस ऐसाही था।
रुपयौवनसम्पन्ना[३] विशालकुलसम्भवाः।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः॥
हितोपदेश।
सद्गुण, उत्तमता के साथ जड़े हुए बहु मूल्य रत्न के समान है। यथार्थ में जो मनुष्य सुकुमार न होकर दर्शनीय है और जिसके शरीर में सुन्दरता की अपेक्षा तेजस्विता विशेष झलकती है उसमें सद्गुण और भी अधिक शोभा पाते हैं। जो लोग बहुत सुस्वरूप होतेहैं उनमें सौन्दर्य के अतिरिक्त और कोई गुण बहुशः देखने में आते भी नहीं हैं मानों ब्रह्मा ने विद्याविनय इत्यादि गुणों को देने के झगड़े में न पड कर सुन्दरताही के उत्पन्न करने में सारा परिश्रम किया है। इसीलिये ऐसे मनुष्य स्वरूपवान् तो होते हैं; परन्तु उनमें साहस तथा उत्साह नहीं होता और वे सद्गुण सम्पादन करने की अपेक्षा बोलचाल सुधारने की ओर विशेष ध्यान देते हैं। तथापि यह नियम सर्वव्यापी नहीं है। रोमका राजा आगस्टस सीज़र तथा टीटस वेस्पेशियानस, फ्रान्सका फिलिप लिबेल, इंग्लैंडका चतुर्थ यडवर्ड, एथेन्स का अलकि
- ↑ हारटेन्शियस रोम का एक प्रख्यात वक्ताथा। इसने १९ वर्ष के वयमें अपनी अत्यन्त प्रभावशालिनी वक्तृता के कारण विशेष ख्याति लाभ की थी। सिसरो से ८ वर्ष पहिले इसका जन्म हुआ था।
- ↑ सीपिओ आफ्रिकेनस रोम में एक विख्यात सेनापति होगयाहै। इसने थोड़ेही वयमें बड़े बड़े पराक्रम के काम किए। ४८ वर्ष की अवस्था में इसकी मृत्यु हुई।
- ↑ रूप और यौवन संपन्न होने तथा अच्छे कुल में जन्म लेने से भी बिना विद्याके, सुवासहीन पलाश पुष्प के समान, मनुष्य शोभा नहीं पाते।