बायडिस, फारस का इस्माईल सूफी—ये सब अपने समय में अत्यन्त सुस्वरूप होकर भी अत्यन्त धैर्यवान् और उत्साही थे। सौन्दर्य में वर्ण की अपेक्षा सुधरता का माहात्म्य अधिक है और तदपेक्षा सभ्य और मोहक गति का अधिक है। अलौकिक सौन्दर्य वही है जिसका चित्र नहीं खींचा जासकता; जिसमें कुछ न कुछ वैगुण्य न हो ऐसे निर्दोष सौंदर्यका होना असम्भवहै। यह कोई नहीं कहसकता कि अपेलिज[१] और आलवर्ट ड्यूरर इन दो चित्रकारोंमें से किसकी योग्यता कमऔर किसकी अधिक थी। इनमेंसे एक तो रेखागणितके नियमानुसार चित्र खींचताथा और दूसरा अनेक सुस्वरूपजनोंके उत्तमोत्तम अवयवोंको देखकर चित्र निकालताथा। हमारी समझमें एतादृश चित्रोंको देखकर उनके बनानेवाले चित्रकारों के अतिरिक्त और किसीको आनन्द न आवै। हम यह नहीं कहते कि जिसका चित्र चित्रकार उतारते हैं, उसकी सुन्दरताको साधारणत वह जितनी है उससे अधिक चित्रमें लानेका उन्हें प्रयत्न न करना चाहिये।
- ↑ अपेलिज, मेसीडन के दिग्विजयी सिकन्दर का चित्रकार था। चित्रकला में यह इतना निपुण था कि इसको छोड़ अन्य चित्रकार को सिकन्दरके चित्र खींचने का अधिकारही न था। एक बार इसने एक ऐसा चित्र सिकन्दर का निकाला जिसे देख वह बहुतही प्रसन्न हुआ। अपेलिज ने पुनर्वार एक दूसरा भी फलक प्रस्तुत किया जिसमें सिकन्दर के घोड़े का चित्र था; इसकी सुघरता पर सिकन्दर ने कुछ असन्तोष प्रगट किया। दैवयोग से उसी समय एक घोड़ा पास से निकला जिसने चित्र गत घोड़े को सजीव समझ बड़े वेग से शब्द किया। इसपर चित्रकार बोल उठा "महाराज! जानपड़ताहै कि आपकी अपेक्षा इस घोड़े को चित्रकला का ज्ञान अधिक है"। सिकन्दर इस पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी एक प्रियतमा का चित्र खींचने की आज्ञा दी; परन्तु खींचते खींचते अपेलिज महात्मा उस पर आसक्त होगये। यह बात जब सिकन्दर तक पहुँची तब उसने उचित अनुचित का विचार न करके उन दोनों का विवाह होजाने की अनुमति देदी।