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बेकन-विचाररत्नावली।
कामजन्य प्रेम २०.

धन्यास्त[१] एव तरलायतलोचनानां,
तारुण्यरूपघनपीनपयोधराणाम्।
क्षामोदरोपरिलसत्रिवलीलतानां,
दृष्ट्वाकृतिं विकृतिमेति मनो न येषाम्।

भर्तृहरि।

मनुष्यके जीवनरूपी नाट्यशालाकी अपेक्षा रङ्गभूमि में (वह स्थल जहां नाटकोंका प्रयोग किया जाता है) प्रेमके दृश्य अधिक शोभा पाते हैं। शृङ्गाररसके जितने सुखान्त नाटक हैं उन सबका विषय तो प्रेम होताही है; शोकरसप्रधान दुःखान्त अभिनयों का भी कभी कभी वही विषय होता है। परन्तु मनुष्यके जीवनमें कामजन्य प्रेमको स्थान मिलनेसे अनेक अनर्थ उत्पन्न होते हैं। इस प्रकारका प्रेम मनुष्य पर कभी कभी मोहनीका सा प्रभाव डालता है और कभी कभी वही राक्षसीके से रूपमें व्यक्त होता है।

विचार करने से यह तुमको विदित हो जायगा कि, प्राचीन अथवा अर्वाचीन समयमें, आजतक, जितने महान् और प्रतिष्ठित पुरुष होगए हैं उनमेंसे एक भी पराकाष्ठाके कामजन्य प्रेमके फंदेमें नहिं फँसा। इससे यह सिद्ध होता है कि, विशेष सत्त्वशील और विशेष कार्यपटु लोग इस प्रकारके अनुचित विकारमें लिप्त नहीं होते। हां, तथापि, रोमके आधे राज्यका उपभोग करने वाला मार्कस[२] अंटोनियस और विधिशास्त्रका प्रवर्तक एपियस[३] क्लाडियस


  1. चंचल और विस्तृत नेत्रवाली, अत्यन्त कृश उदरके ऊपर शोभायमान त्रिवलीलताको धारण करनेवाली, पीनस्तनी, परमरूपवती, तरुणस्त्रियोंको देखकर, जिनके मनमें विकार नहीं उत्पन्न होता है, वेही धन्य हैं।
  2. मार्कस अंटोनियस रोमका एक सर्दार था। यह बड़ा वीर पुरुष था; परन्तु विषयी भी बड़ा था। क्लियोपटरा नामक एक परम सौन्दर्यवती स्त्रीका वशीभूत था। इसने रोमराज्यके एक भागको अपने आधीनकरलिया था और स्वतन्त्र होगया था। यह मद्यप भी था; कहते हैं मद्यपानकी प्रशंसामें इसने एक पुस्तक लिखी है। ५६ वर्षके वयमें ईसवी सन् के ३० वर्ष पहिले एक युद्ध में परास्त होनेके कारण इसने आत्मघात किया।
  3. एपियस क्लाडियस रोमका राजा था। यह भी बड़ा विषयी था। इसे इसकी रानी अग्रीपीनाने किसी कारणसे विष देकर मरवा डाला। यह ५४ ईसवीमें ६३ वर्षका होकर मारागया।