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बेकन-विचाररत्नावली।


सत्य १.
सत्य[१]मेकाक्षरं ब्रह्म सत्यमेकाक्षरं तपः।

सत्यमेकाक्षरो यज्ञः सत्यमेकाक्षरं श्रुतम्॥

महाभरात।

"सत्य कहते किसे हैं"? इसप्रकार पायलेट[२]ने विनोदसे प्रश्न किया, परन्तु उत्तर मिलनेके पहिलेही वह उठ खड़ा हुआ और चल दिया। ऐसेभी बहुतसे मनुष्य होते हैं—यह सत्य है। उनको किसी बातपर विश्वास नहीं आता; भ्रमिष्ठकी भाँति चित्तवृत्तिको चारों ओर चक्कर देनाही उन्हैं अच्छा लगता है। किसीभी मतको ग्रहण करके उसपर स्थिर होना, पैर में बेड़ी पड़ने के समान उन्हैं कष्टदायक जान पड़ता है। वे यह समझते हैं कि, उनको इस बातका पूरा अधिकार है कि, वे जिसप्रकारके विचार अथवा व्यवहार चाहैं कर सकते हैं। प्राचीन कालमें नास्तिकोंका एक पंथ ऐसा था जिसके मूल तत्त्व ऐसेही थे। यद्यपि उस पन्थका अस्तित्व इस समय जाता रहाहै, तथापि उसके मतका अवलंबन करनेवाले अबभी बहुतसे लोग पाए जाते हैं। वे लोगभी विवादचातुर्य दिखाने और प्रत्येक विषयमें संशयउत्थापन करनेमें कुशल होतेहैं। परन्तु फिरभी प्राचीनोंकी ऐसी दक्षता उनमें नहीं होती।


  1. सत्य अविनश्वर ब्रह्म है, सत्य अविनश्वर तप है, सत्य अविनश्वर यज्ञ है और सत्यही अविनश्वर श्रुति है।
  2. जूडिया प्रदेशमें 'पायलेट' नामक एक रोमन गवर्नर था। इसीने काइस्टको वधदण्ड दिया। इसीने जब क्राइस्ट से पूछा "तू कौन है"? तब क्राइस्ट ने कहा "मैं सत्यके प्रचार करनेके लिये उद्योग करनेवाला हूं"। इसपर पायलेटने फिर प्रश्न किया कि 'सत्य कहते किसे हैं'? परन्तु उत्तर मिलनेके पहिलेही वह न्यायासन छोड़कर चल दिया।