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बेकन-विचाररत्नावली।


पैशाचिक मार्गसे अर्थात् कपट, बलात्कार और अन्यायद्वारा जो सम्पत्ति मिलती है उसके आनेमें देरी नहीं लगती।

धन एकत्र करनेके अनेक साधन हैं; परन्तु उनमेंसे बहुतेरे अति अधम हैं। कार्पण्य सबसे अच्छा है; परन्तु उसमें भी यह दोष है कि, उसके कारण दान धर्म्म करने और उदारता दिखलानेमें मनुष्य नहीं समर्थ होता। पृथ्वीको अच्छी दशामें लाना द्रव्योपार्जन करनेका अत्यन्त स्वाभाविक मार्ग है, क्यों कि, इस द्वारा जो द्रव्य मिलता है वह अपनी माता वसुन्धराके प्रसादसे मिलता है; परन्तु, हां, मिलता देरमें है। तथापि धनी लोग जहां कृषीकी ओर झुकते हैं वहां थोडे ही कालमें द्रव्यकी अतिशय वृद्धि होती है। इंग्लैंड में हमारे परिचयका एक श्रीमान् सरदार था। उसको इतना हिसाब किताब रखना पड़ता था कि, उस समय उतना और किसीको भी न रखना पडता था। उसके यहां बहुत गाय बैल थे; बहुत भेडें थीं; लकड़ीका भी व्यापार होता था; खानका भी वह काम करता था; धान्य भी रखता था; सीसे और लोहेका भी व्यवसाय करता था। इसके अतिरिक्त और भी अनेक छोटे छोटे कृषीके काम उसके यहां होते थे। अतएव उसे सदैव इतना माल मँगाना पडताथा कि, पृथ्वी उसके लिए समुद्र होरही थी।

एक कहावत है कि, "वह बडे परिश्रम से थोडा धन संचय करसका, परन्तु बहुत धन बहुत शीघ्र इकट्ठा होगया" इसका अभिप्राय यह है कि, पहिले विशेष परिश्रम से थोडा द्रव्य मिलता है परन्तु जब थोडा मिलगया तब उसकी वृद्धि बहुत शीघ्र होती है। कारण यह है कि, जब इतना द्रव्य पास होजाता है कि, बाज़ार भाव अनुकूल होनेतक मनुष्य अपना कारबार बन्द रख सकता है, तथा जिनके करने की बहुत कम लोगोंको सामर्थ्य है, ऐसे ऐसे बड़े बड़े व्यवसायों को करने लगता है तब वह बहुत शीघ्र धनी होजाता है।

साधारण व्यापार तथा उद्योग से जो प्राप्ति होती है वह प्रामाणिक होती है और दो प्रकारसे वह बढ़ती है। एक तो चातुर्यसे