पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/६६

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द्रव्य।


और दूसरे सच्चे व्यवहार करनेकी कीर्ति सम्पादन करनेसे। परन्तु ठेकालेने अथवा बड़े बड़े सौदे करनेसे जो प्राप्ति होती है उसकी प्रामाणिकताका ठीक नहीं रहता। क्योंकि, ऐसे व्यवसायोंमें दूसरे की आवश्यकताकी ओर दृष्टि रखकर अपना काम निकालना पड़ता है; दूसरे के नौकर चाकर मनुष्योंको लोभ दिखलाकर सौदा करना पड़ता है; दूसरे यदि अधिक पैसे देकर वहीं काम करना चाहते हैं तो उन्हें हर प्रयत्नसे हटाना पडता है। इस प्रकार का व्यवहार करना निंद्य और कपटी मनुष्यका काम है। जब कोई किसी वस्तुको एकसे लेकर दूसरे को तत्काल ही बेच देता है तब वह दूनी कमाई करता है। जिससे मोल लेता है उससे भी लाभ उठाता है और जिसे देता है उससे भी-अर्थात् दोनोंसे पैसे बनाता है। साझेमें काम करनेसे भी बहुत लाभ होता है; परन्तु साक्षी विश्वासपात्र होने चाहिए।

कुशीदवृत्ति अर्थात् ब्याज बट्टेका काम करनेसे अवश्यमेव बहुत लाभ होता है; परन्तु इस धन्धेका आश्रय लेनाअति निंद्य है क्योंकि इसमें मनुष्यको दूसरे की गाढ़ी कमाईके पैसेसे अपना पेट पालना पड़ता है। इस व्यवसायमें प्राप्ति अवश्य होती है, परन्तु निर्दोष यह भी नहीं है। कभी कभी मध्यस्थ मनुष्य और दलाल; अपने लाभके लिए ऐसे ऐसे अप्रामाणिक लोगोंको रुपया दिलवा बैठते हैं, कि फिर वह रुपया उनके पाससे लौटकर घर नहीं आता।

एक आध नवीन कला अथवा नवीन कल्पना जो निकालता है उसे कभी कभी शीघ्रही अपार द्रव्य मिल जाता है। जिसने कानेरी द्वीपमें पहिले पहिल शक्कर बनाना प्रारम्भ किया वह एक बारही कुबेर होगया। अतएव, उत्कृष्ट नैय्यायिकके समान जिसमें विवेक और कल्पनाशक्ति दोनों होती हैं वह मनुष्य बहुत कुछ कर सकता है। परन्तु, हां, समय अनुकूल होना चाहिए। जिसकी प्राप्तिके मार्ग नियमित होते हैं वह क्वचित् धनाढ्य होता है। इसी प्रकार जो