है। यह सत्य है, परन्तु धर्मभीरुताका प्राबल्य इतना है कि तव्द्दारा प्रेरित होकर मनुष्य कसाईके समान हृदयको कठोर करके पहिले पहिलभी रक्तपात करनेसे नहीं हिचकते। किसीके प्राण हरण करनेमें भी देवताओंको भक्तिभाव दिखलानेके लिए, किएगए प्रण (मानमन्ता) का प्रभाव अभ्यासके प्रभावके बराबर ही होता है। इसके अतिरिक्त और सब कहीं अभ्यास ही का माहात्म्य अधिक देख पड़ता है। मनुष्य प्रतिज्ञा करते हैं; शपथ खाते हैं; वचन देते हैं; सब कुछ करते हैं, परन्तु प्रसंग पड़नेपर फिर जैसा करते आए हैं वैसाही करने लगते हैं। जान पड़ता है इस प्रकारके मनुष्य मनुष्यही नहीं, किन्तु अभ्यासरूपी पहियोंके बल चलनेवाली काठकी कठपुतरी हैं।
किसी समुदायमें जो बात चिरकालसे होती आई है उसे रुढ़ि अथवा रीति कहते हैं। देखिए इस रूढ़िमें कितना पराक्रम है। अमेरिकाके इन्डियनलोग (उनमेंसे जो अपनेको सज्ञान समझते हैं वे) जीतेही जल मरते हैं। यही नहीं; किन्तु उनकी स्त्रियां भी अपने अपने पतिके शवके साथ अग्निप्रवेश करती हैं! पूर्वकालमें ग्रीस देशके स्पार्टा नगरमें, लडकोंके ऊपर, दियाना नामक देवीके मन्दिरमें, कोडों की वर्षा की जाती थी; तथापि वे इतनेपर भी मुखसे चकार तक नहीं निकालते थे। हमको 'स्मरण है, इंग्लैंडमें एलिज़ब्यथ रानीके सिंहासनपर बैठनेके कुछ ही कालोपरान्त, एक आयरलैंडके सरदार को रानीके विरुद्ध शस्त्र उठानेके अपराधमें, प्राणान्त दण्ड हुआ था। उसने राज्यके अधिकारियोंसे यह विनय किया कि मुझे रस्सीसे फांसी न देकर 'विलो' नामक पेड़ की पतली छड़से फांसी दी जाय। इस का यही कारण था कि उसके पहिले राजाके विरुद्ध शस्त्र उठानेवालों को उसी प्रकार फांसी दीगई थी। रूसमें ऐसे ऐसे सन्यासी पडे हैं जो रात रात भर, तबतक पानीमें बैठे तपस्या किया करते हैं, जबतक उनका सारा शरीर बर्फके साथ जमकर पत्थरके समान कड़ा नहीं हो जाता।