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बेकन-विचाररत्नावली।

काम काज और पठन पाठनसे अवकाश मिलनेपर मन उन विषयोंकी ओर आपही आप चला जाता है। मनुष्यका स्वभाव ऐसा है कि वह भले बुरे दोनों विषयोंकी ओर झुकता है। इस लिए जो कुछ बुरा है उसको छोड़ना चाहिए और जो कुछ भला है उसे ग्रहण करना चाहिए।


रूढ़ि २३.
१ शास्त्राद्रूढिर्बलीयसी[१]

मनुष्यों के विचार बहुधा उनकी मनोवृत्तिके अनुसार होते हैं; उनके भाषण, उनकी विद्वता और उनके मतके अनुसार होते हैं; परन्तु उनके कृत्य उनकी अभ्यसित रीतिके अनुसार होते हैं। इसीलिए मैकियाव्यलने कहा है—और बहुत ठीक कहा है—कि प्रकृति पर भरोसा न करना चाहिए; और न निरी बातचीत की प्रगल्भता हीपर भरोसा करना चाहिये। कोई भी काम हो, यदि उसको करनेका स्वभाव पड़गया होगा तभी मनुष्य उसे सुव्यवस्थित रीतिपर कर सकेगा। उसका यह कथन है कि यदि कोई घोर साहसका काम करना हो तो एक उग्र स्वभाववाले अथवा अतिशय दृढनिश्चयवाले मनुष्यपर विश्वास न करना चाहिए। ऐसे कामके लिए एक ऐसा मनुष्य नियुक्त करना चाहिए जिसने एक बार रक्तसे अपने हाथ लाल किए हों। अर्थात् जिसे एतादृश काम करने की आदत पड़ गई होगी वही उसे अच्छे प्रकारसे करनेमें समर्थ होगा। परन्तु मैकियाव्यल का कथन सर्वथैव सत्य नहीं है; क्यों कि, वह फ्रायर क्लेमेन्ट, सैविलाक; ज़ारेगाय और बालटाज़र जेरार्डको नही जानता था। ये लोग ऐसे होगए हैं जिन्होंने वे वे काम किए हैं जो उन्होंने पहिले कभी नहीं किए थे। तथापि मैकियाव्यलका कहना बहुत करके यथार्थ है कि प्रकृति और प्रणमें उतनी शाक्ति नहीं है जितनी शक्ति अभ्यासमें


  1. रूढ़ि अर्थात् देशाचारके आगे शास्त्रकी भी कुछ नहीं चलती।