मध्यस्थकी आवश्यकता होनेसे सीधे सादे मनुष्योंको मध्यस्थ करना चाहिए; कपटी आदमियोंको कदापि मध्यस्थ न करना चाहिए। सीधे सादे लोगोंसे जो कुछ कहा जाता है वहीं वह जाकर कहते हैं और परिणाम क्या हुआ, सो ठीक ठीक आकर बतलाते हैं। परन्तु कपटी मनुष्य दूसरेके काममें स्वयं लाभ उठानेका यत्न करने लगते हैं और जहां जाते हैं वहांसे लौटकर जो कुछ कहना है उसमें नमक मिर्च लगाकर कहते हैं। जिस कामसे जिनका थोडा बहुत सम्बन्ध है उन्हींको वह काम कहना चाहिए। ऐसा करनेसे काम शीघ्र होता है। इसी भाँति जो जिस कामके योग्य है उसी की योजना उस कामको करनेके लिए करनी चाहिए। उदाहरणार्थ:-वाग्युद्ध करनेका काम धृष्ट मनुष्यको देना चाहिए; समझाने अथवा मनानेका काम मिष्ठभाषी मनुष्यको देना चाहिए; पूंछ पांछ करने अथवा देखने भालनेका काम धूर्त मनुष्यको देना चाहिए; बुरा अथवा अपयशका काम किसी मूर्ख और हठी मनुष्यको देना चाहिए। जिन मनुष्योंको पहिले कोई काम दिया है और उसमें वे यशस्वी हुए हैं उनकी योजना उसी काममें करनी चाहिए। इससे विश्वास बढ़ता है और पहिले की भांति उत्साहपूर्वक काम करके वे लोग फिर भी यशस्वी होनेका प्रयत्न करते हैं।
जिससे अपना काम है उसको सहसा सब बात प्रथमही कह देने की अपेक्षा धीरे धीरे उसके मनकी थाह ले लेने के अनन्तर कहना अच्छा है। परन्तु, हां, यदि अकस्मात् किसी छोटेसे प्रश्नके मिषसे उसे चकित करके उसका मनोगत भाव जानना हो तो बात दूसरी है। काम काज यथास्थित होनेके कारण जिनकी इच्छा और कुछ करने की नहींहै उनकी अपेक्षा वे लोग जिनको कामकी भूख है उनसे व्यवहार करना अच्छा है। जब कोई मनुष्य किसीका काम किसी नियम के अनुसार करता है तब उस नियमको पूरा न करनेके पहिले ही