पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७२)
बेकन-विचाररत्नावली।

जितने कठिन काम हैं उनके तत्काल सिद्ध होनेकी आशा न रखनी चाहिये। आरम्भके अनन्तर कार्यसाधनकी सामग्रीका ठीक ठीक प्रबन्ध करके धीरे धीरे उसे परिपक्क होने देना चाहिये।


विवाह और अविवाहित्व २५.

सानन्दं[१] सदनं सुताश्च सुधियः कान्ता न दुर्भाषिणी
सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रतिश्र्वाज्ञापराः सेवकाः।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान्नपानं गृहे
साधोः संगमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः॥

भर्तृहरि।

स्त्री और लड़के वाले होनेसे मनुष्य प्रारब्धके आधीन सा होजाता है। बड़े बड़े काम उससे नहीं होसकते-चाहै वह काम काज भले हों अथवा बुरे; क्योंकि, स्त्री पुत्रादि साहसके कार्योंके प्रतिबन्धक होते हैं। यथार्थमें उत्तमोत्तम और लोकोपयोगी जितने काम हुए हैं वे सब अविवाहित और सन्ततिहीन मनुष्योंहींके हाथसे हुए हैं। एतादृश मनुष्य सर्वसधारणको अपना प्रेमपात्र बनाकर मानों उन्ही को संवरण करते हैं और अपनी सारी सम्पत्ति भी मानो उन्हीको अर्पण करते हैं। जिनके लड़के वाले हैं उन्हीको विशेष करके भविष्यत् की सबसे अधिक चिन्ता रहती है; कारण यह है कि, वे जानते हैं कि, भविष्यत् ही में हमारी सन्ततिको सांसारिक व्यवसायोंमें लीन होना होगा। बहुतेरे अविवाहित मनुष्य भविष्यत्का कुछ भी विचार


  1. आनन्दमय घर, बुद्धिमान पुत्र, मिष्ठाभषिणी स्त्री, धनी सन्मित्र, स्वस्त्री मे प्रेम, आज्ञाकारी सेवक, अतिथि का आदर, शिवपूजन, प्रतिदिन उत्तम भोजन, सतत साधुसमागम;-जिसके प्रतापसे ये सब प्राप्त होते हैं वह गृहस्थाश्रम धन्य है।