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विवाह और अविवाहित्व।


नहीं करते। वे यह समझते हैं कि जो कुछ है हमी तक है। आगे कुछ नहीं। कोई कोई मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो यह समझते हैं कि स्त्री और लड़के बाले व्ययका कारण मात्र हैं। उनके खाने पीने और वस्त्राच्छादन आदिका प्रबन्ध करना मानो "व्हाइटवे लेडला ऐंड कम्पनी" के बिल चुकाना है। यही नहीं किन्तु कोई कोई ऐसे भी मूर्ख, धनी और मक्खीचूस पड़े हैं जो सन्तान न होना भूषण समझते हैं। वे यह जानते है कि निरपत्य होनेसे हम औरोंकी अपेक्षा अधिक धन सम्पन्न देख पड़ते हैं। स्यात् इन लोगोने इस प्रकारकी बातचीत कभी सुनी होगी। एकने किसीसे कहा "अजी तुमने सुना है वह बड़े पैसेवाले हैं"। इसपर दूसरेने उत्तर दिया "जीहां; परन्तु तुम नहीं जानते उनके पीछे लड़के बालोंका कितना झगड़ा है"। मानो बालबच्चों के पालन पोषण करनेसे सम्पत्ति कम होजाती है। परन्तु विवाह न करनेका सबसे साधारण कारण स्वतन्त्र रहनेकी इच्छा कहना चाहिए। स्वच्छन्दशील, विनोदी और केवल अपनेही सुख को सुख जाननेवाले लोग स्वतंत्र रहनेहीकी इच्छासे विवाह नहीं करते। प्रत्येक अटकावकी बात उनके चित्तमें ऐसी चुभती है मानो किसी दिन वे अपने कमरबन्द और मोजे बांधनेके फीतेकोभी बन्धन और बेड़ीके समान समझने लगेंगे। अविवाहित मनुष्य सर्वोत्तम मित्र, सर्वोत्तम स्वामी और सर्वोत्तम सेवक होते हैं; परन्तु प्रजाका राजाके विषय में जो धर्म है उसके परिपालनमें सदैव सर्वोत्तम नहीं होते। स्थानान्तरमें चले जाना तो उनके लिए कोई बातही नहीं है। भागेहुए सारे मनुष्य प्रायः अविवाहितही होते हैं।

धर्मोपदेशकोंको अविवाहित रहना अच्छा है; क्योंकि गृहस्थाश्रमके फंदेमें फँसजानेसे सर्वसाधारणके हितसाधनकी ओर उनकी प्रवृत्ति कम होजाती है। न्यायाधीशोंके लिये विवाह करना और न करना दोनों बराबर है। यदि वे कानके कच्चे और उत्कोचग्राही हुए तो उनसे अपना काम निकालनेके लिए स्त्रीकी अपेक्षा कई गुणा