पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/९६

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दाम्भिक बुद्धिमत्ता। (९१)


उसका नाम उसने प्रोटागोरस[१] रक्खाहै। इस संदर्भ में प्रोडिकस[२] नामक एक पात्रके मुखसे उसने एक वक्तृता दिलाई है जिसमें आदि से लेकर अन्ततक केवल "भेद" वर्णन है। मुख्य विषयकी ओर दृक्पात तक नहीं किया गया। जितने विचारणीय विषय हैं उन सबमें एतादृश मनुष्य प्रतिकूल पक्ष अवलम्बन करते हैं। तदनन्तर वे भावी विघ्नोंका विवेचन करके अनेक शंका उठाते हैं और तद्द्वारा अपनी बुद्धिमानी व्यक्त करते हैं। इसी प्रकारका व्यवहार करना वे अपने


  1. प्रोटागोरस नामका एक तत्त्ववेत्ता ग्रीसमें हुवा है। वह ईश्वरका अस्तित्वही नहीं मानताथा। एक पुस्तक उसने इसी विषयपर लिखीथी जो सर्व साधारणके सामने एथन्स में जलादीगई। प्रोटागोरस अपनी नास्तिकताके कारण देशसे निकाल दियागया था। भूमध्य सागरके अनेक द्वीपोंमें घूमता फिरता सिसलीमें ४०० वर्ष ईसाके पहिले वह मृत्युको प्राप्त हुआ। अनुमान होता है प्लेटोका निबन्ध इसी प्रोटागोरसके सम्बन्धमें है।
  2. प्रोडिकस लगभग ३९६ वर्ष ईसाके पहिले नास्तिक मतावलम्बी एक साहित्यज्ञ होगया है। एथन्समें तथा ग्रीसके और बड़े बड़े नगरोंमें यह व्याख्यान देता फिरता था। इसने कई एक ग्रन्थ लिखे हैं। इसके सिद्धांतोंसे अप्रसन्न होकर एथन्सवालोंने इसको यह अपराध लगाकर मरवाडाला कि यह अपक्क बुद्धि नवयुवकोंके चित्तको अपने व्याख्यानोंसे कलुषित करताहै।