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पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/९७

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बेकन-विचाररत्नावली।


लिए हितावह समझते हैं, क्यों कि जिस बातका विचार करना है वह यदि विघ्नभावना और शंकोत्थान करनेसे परित्यक्त होगई तो उसी क्षण उसका अन्त होगया। परन्तु यदि मान्य समझीगई तो मानो आगे के लिए और काम बढ़ा। ऐसी दाम्भिक बुद्धिमत्तासे काम का सत्यानाश होता है; इसमें कोई सन्देह नहीं। सत्य तो यह है कि ऐसे ऐसे दाम्भिक पुरुषोंको अपनी न्यूनताको गोपन करके अपनी बुद्धिमानी दिखाने के लिए जितना प्रयत्न करना पड़ता है उतना एक आध दिवालिए महाजन अथवा नष्टद्रव्य धनीको भी अपना दास्य छिपाने के लिए नहीं करना पड़ता।

दाम्भिक बुद्धिमत्ताको व्यक्त करनेवाले लोग कदाचित् लोकमें मान सम्भ्रम भी प्राप्त करते होंगे परन्तु किसी भी विचारशील पुरुषको उनकी बाहरी बात चीतमें लुब्ध होकर उन्हैं कोई काम न देना चाहिए। कामकाजके लिए ऐसे पाखंड पूरित मनुष्योंकी अपेक्षा भोले भाले सीधे मनुष्य अच्छे होते हैं।


मैत्री।

पापान्निवारयति[], योजयते हिताय,
गुह्यञ्च गूहति, गुणान्प्रकटीकरोति।
आपद्गतं नच जहाति, ददाति काले,
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥

भर्तृहरि।

"जिस मनुष्यको एकान्तवासमें आनन्द आता है उसे या तो


  1. जो सच्चा मित्र है, वह अपने मित्रको, अनुचित कार्य करनेसे रोकता है, जिसमें उसका हित हो, उस कार्यकी ओर उसे वह प्रवृत्त करता है; जो बातैं किसीसे न कहनी चाहिए उन्हें वह छिपाता है; जो बातें उसके सद्गणोंकी परिचायक हैं, उनको, वह, सब ओर प्रकट करता है. आपत्ति आनेपर वह अपने मित्रको कभी नहीं छोडता; और समयपर वह उनकी रुपये पैससेभी सहायता करता है-सत्पुरुषोंने सच्चे मित्रके यही लक्षण कहे हैं।