पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१६९

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पंचम अध्याय रेचित वायु का बहिःस्थापन कर प्राणरोध करना ही विधारण या कुभक है। इस क्रिया में भीतर की वायु को बाहर निकालकर फिर श्वास का ग्रहण नहीं होता। इससे शरीर हल्का और चित्त एकाग्र होता है । यह एक प्रकार का प्राणायाम है। प्राणायाम के प्रसङ्ग में इसे बाप-पतिक प्राणायाम कहा है। योग-दर्शन में चार प्रकार का प्राणायाम वर्णित है [ देखिए. साधनपाद | स्त्र ५०-५१ ] बाह्य-वृत्तिक, प्राभ्यन्तर-वृत्तिक, स्तंभ-वृत्तिक और बाह्याभ्यंतर विषयाक्षेपी । प्राणायाम का अर्थ है श्वास-प्रश्वास का अभाव अर्थात् श्वासरोध । बाह्य वृत्तिक रेचक पूर्वक कुभक है । श्राभ्यन्तर-वृत्तिक पूरक-पूर्वक कुमक है। इस प्राणायाम में बाह्य वायु को नासिका पुट से भीतर खींचकर फिर श्वास का परित्याग नहीं किया जाता है । स्तंभ-वृत्तिक प्राणायाम केवल कुभक है। इसमें रेचक या पूरक की क्रिया के बिना ही सकृत्प्रयान द्वारा वायु की बहिर्गति और श्राभ्यन्तरगति का एक साथ श्रभाव होता है । चौथा प्राणायाम एक प्रकार का स्तंभ-वृत्तिक प्राणायाम है। भेद इतना ही है कि स्तंभवृत्तिक प्राणायाम सकृत्प्रयत्न-द्वारा साध्य है किन्तु चौथा प्राणायाम बहु-प्रयन-द्वारा साध्य है । अभ्यास करते-करते अनुक्रम से चतुर्थ प्राणा- याम सिद्ध होता है, अन्यथा नहीं । नृतीय प्राणायाम में पूरक और रेचक के देशादि विषय की श्रालोचना नहीं की जाती। केवल देश, काल और संख्या-परिदर्शन-पूर्वक स्तंभवृत्तिक की आलोचना होता है। किन्तु चतुर्थ प्राणायाम में पहले देशादि परिदर्शन-पूर्वक बाह्य वृत्ति और श्राभ्यन्तर वृत्ति का अभ्यास किया जाता है। चिरकाल के अभ्यास से जब ये दो वृत्तियाँ अत्यन्त सूक्ष्म हो जाती है, तब साधक इनका अतिक्रम कर श्वास का रोध करता है। यही चतुर्थ प्राणायाम है । तृतीय और चतुर्थ प्राणायाम में वाह्य और आभ्यन्तर वृत्तियों का अतिक्रम होता है, अंतर इतना ही है कि तृतीय प्राणायाम में यह अतिक्रम एक बार में ही हो जाता है। किन्तु चतुर्थ प्राणायाम में चिरकालीन अभ्याम वश ही अनुक्रम से यह अतिक्रम सिद्ध होता है। बाह्य और अाभ्यन्तर वृत्तियों का अभ्यास करने करते पूरण और रेचन का प्रयत्न इतना सूक्ष्म हो जाता है कि वह विधारण में मिल जाता है । प्राणायाम योग का एक उत्कृष्ट साधन है । वौद्धागम में इसे पानापान-स्मृति-कर्म स्थान कहा है । 'श्रान' का अर्थ है 'सांस लेना' और 'अपान का अर्थ है 'सांस छोड़ना'। इन्हें आश्वास-प्रश्वास' भी कहते हैं। स्मृति-पूर्वक श्राश्वास-प्रश्वास की क्रिया द्वारा जो समाधि में .. विनय की मधुकथा (टीका ) के अनुसार 'भारवास' साँस छोड़ने को और प्रश्वास साँस लेने को कहते हैं। लेकिन सूत्र को अयंकथा में दिया हुमा अर्थ इसका ठीक उलटा है। भाचार्य युद्धघोष विनय की अर्थ-कथा का अनुसरण करते हैं। उनका कहना है किअपपालक माता की कोख से बाहर आता है तब पहले भीतर की हवा बाहर जाती है और पीछे बाहर को हवा भीतर प्रवेश करती है। इस प्रवृति क्रम से मारवाल यह वायु है जिसका निःसारण होता है। सूत्र की अर्थकथा में दिया हुआ अर्थ पातलक योगसूत्र के म्यास-भाष्य के अनुसार है ( २४ पर ग्यास भाग्यः बासमवावीरामयनं स्वासः, कोषयस्य कायोः निःसारण प्रवासः )।