पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२६६

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१७८ बौर-धर्म-मन अंश कहा जाता है। यह अनुत्तर योगतन्त्र है। इसमें मुख्य रूप से योगसिद्धि की पाँच भूमियों का ही वर्णन है, किन्तु इन भूमियों की प्राप्ति के उपाय मंडल, यंत्र, मंत्र और देवपूजन बताये गये हैं। इस ग्रन्थ के पांच भाग है। तीसरे भाग के रचयिता शाक्य-मित्र (५० ई.) तथा शेष ४ भागों के प्रणेता नागार्जुन बताये गये हैं। 'मंजुश्रीमूलकल्प' नाम का ग्रन्थ अपने को 'अक्तंसक के अन्तर्गत 'महावैपुल्य-महायान- सूत्र के रूप में प्रकट करता है। किन्तु विषय की दृष्टि से यह मंत्रयान के अन्तर्गत है। इसमें शाक्यमुनि ने मजुश्री को मंत्र, मुद्रा और मण्डलादि का उपदेश किया है। एकल्लवीर चण्डमहारोपण-तंत्र में एक और महायान-दर्शन के अनुसार प्रतीत्यसमुत्पाद की व्याख्या की गई है और दूसरी ओर योगिनियों की साधनाएँ बताई गई है । 'श्रीचक्रसम्भार-तंत्र में जो केवल तिब्बती भाषा में उपलब्ध है, महामन्त्र की प्राप्ति के साधन रूप से मंत्र, ध्यान आदि का निरू. पण है, और मंत्रों की प्रतीकात्मक धारणा की गयी है ।