पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३४४

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चौर-धर्म-दर्शन देव और पुरातन कर्म कर्म चेतना तथा चेतनाकृत शरीर चेष्टा और वाग-ध्वनि है। इससे कर्म-स्वातन्त्र्य का स्वभाव प्रकट होता है | कर्म मानस, कायिक और वाचिक है। कर्म के यह प्राचीन भेद है, यह भी यही सिद्ध करते हैं। किन्तु सब इस स्वातन्य को नहीं मानते। ईश्वरवादी यह कहते है कि ईश्वर सत्वों के कमों का विधायक है । नियतिवादी कहते हैं कि दैव जीव को कर्म में नियोजित करता है, जैसे वह सुख-दुःख का देनेवाला है । दैव क्या है ? या तो यह यहच्छा है, अर्थात् हमारे कर्म अकारण होते हैं, या यह पुरातन कम है 'दैवं पुरातनं कर्म' (बोधिनर्यावतार ८८१)। इस बन्म के हमारे कर्म पूर्व-जन्म-कृत कर्मों के फल है । किन्तु हम स्वतन्त्र नहीं है, तो हम पाप-क्रिया नहीं कर सकते और यदि यहच्छावश, ईश्वरेच्छावश, पुरातन कर्मवश हमारे कर्म होते हैं, तो हम स्वतन्त्र नहीं है । जातकमाला (२३) में निम्न पांच वादों का निराकरण है। सत्र अहेतुक है, सब ईश्वरा- धीन है, सब पुरातन कर्म के आयत्त है, पुनर्जन्म नहीं है, वर्ण-धर्म का सबको पालन करना चाहिये। किन्तु अपने प्रतिवेशी के स्वातन्त्र्य में विश्वास नहीं करना चाहिये । अंगुत्तर ( ३,८६ ) के अनुसार “जब एक भिक्षु किसी सब्रह्मचारी को अपने प्रति अपराध करते देखता है, तो वह विचारता है कि यह 'आयुष्मान् जो मेरा आक्रोश करता है, पुरातन कर्म का दायाद है ।" बुद्धि और चेतना हमने कहा है कि कर्म मुख्यतः चेतना है। सर्वास्तिवादियों के अनुसार छन्द ( = कर्तु-काम्यता या अनागत की प्रार्थना ), मनसिकार (चित्त का श्राभोग, बालंबन में चित्त का प्रावर्जन, अवधारण ) और अधिमोद ( अालंबन का गुणावधारण ) चेतना के सहभू हैं। इनमें व्यायाम, निश्चय और अध्यवसाय बोष्ठिये । इनमें वितर्क जोड़िये जो छन्द के अनन्तर उत्पन्न होता है और जो कभी चेतना का प्रकार-विशेष है, और कभी प्रक्षा का प्रकार विशेष है। सर्वास्तिवादियों के अनुसार चेतना एक चैत्त है, अर्थात् चित्त-सहगत धर्म है। किन्तु पञ्चेन्द्रियविज्ञान (चक्षुर्विज्ञान 'कायविज्ञान ) में चेतना अत्यधिक दुर्बल होती है, और मनोविज्ञान में पटु होती है । मनोविज्ञान, बालंबन और आलंबन का नाम, दोनों बानता है । यह मनोविज्ञान है जो चक्षुविज्ञान से अभिसंस्कृत हो वों की ओर प्रवृत्त होता है, और इन्द्रियविधान से पृथक् स्मृति-विषय की ओर प्रवृत्त होता है । यह चेतना है। यह सर्द- चित्तगत है। किन्तु सब मनोविशन चेतना नहीं है। जिस चेतना को भगवान् 'मानस कर्मा कहते हैं, वह विशेष प्रकार का मनोविज्ञान है। यह एक मनसिकार है, चिस और फर्म का अभिसंस्कार करता है । चेतना चित्त को प्राकार-विशेष प्रदान