पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५४७

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अटादश अध्याय विज्ञानाहार का लक्षण श्रादान है। यह मानव विज्ञान है। पहले तीन आहारों से उपचित होकर यह इन्द्रियों के महाभूनों का पोषण करता है। इसमें आठों विज्ञान संग्रहीत हैं, किन्तु यह अत्रम है जो आहार की संज्ञा प्राप्त करता है। यह एकजातीय है, यह सदा सन्तानात्मक है। इन दारों को 'आहार' इसलिए कहते हैं कि यह सत्वों के काय और जीवित के श्राधार है । कवडीकार केवल कामधातु में होता है, अन्य दो तीन धातुओं में होते हैं। यह तीन चौथे पर श्राश्रित हैं । चौथे के रहने पर ही इनका अस्तित्व है । प्रवृत्ति-विज्ञानों के अतिरिक्त एक और विपाक-विज्ञान है । यह एकजातीय (सदा श्रव्याकृत), निरन्तर, धातुक है और काय-जावित का धारक है । भगवान् जब कहते हैं कि सब सत्व आहार-स्थितिक हैं तब उनका अभिप्राय इस मूल-विज्ञान से है । निरोष-समापति यानुसार “जा संज्ञादित-निरोध-सभापत्ति में विहार करता है, उसके काय-वाक्- चित्त-संस्कार का निरोध होता है किन्तु उसका अायु परिक्षीण नहीं होता, उ'म व्युपशान्त नहीं होता, इन्द्रियाँ परिभिन्न नहीं होती और विज्ञान काय का परित्याग नहीं करता ।" यह विज्ञान अष्टम विज्ञान ही हो सकता है। अन्य विज्ञान के श्राकार औदारिक और चंचल हैं। सूत्र को एक सूक्ष्म, अचल, जातीय, सर्वगत विज्ञान इष्ट है जो जीवितादि का आदान करता है । सास्तिवादी के अनुमार यदि सूत्रवचन है कि विज्ञान काय का परित्याग नहीं करता तो इसका यह कारण है कि रमापत्ति से व्युत्थान होने पर विज्ञान की पुनरुत्पत्ति होती है । वह नहीं कहते कि चित्त-संस्कारों का इस ममापत्ति में निगेध होता है, क्योंकि चित्त या विज्ञान का उत्पाद और निरोध उसके संस्कारों के साथ होता है । या तो संस्कार काय का त्याग नहीं करते या विज्ञान काय का त्याग करता है । जीवित, उम्म, इन्द्रिय का वही हाल होगा जो विज्ञान का । अत: जीवितादि के समान विज्ञान काय का त्याग नहीं करता । यदि वह काय का त्याग करता है तो यह सत्वारण्य नहीं है। कोई कैसे कहेगा कि निरोध-समापत्ति में पुद्गल निवास करता है ? यदि यह काय का त्याग करता है तो कौन इन्द्रिय, जावित, उम का श्रादान करता है ? श्रादान के अभाव में यह धर्म निरुद्ध होंगे। यदि यह काय का त्याग करता है तो प्रतिसंधान कैसे होगा ! न्युत्थान-चित्त कहाँ से श्राएगा? वस्तुतः जब विपाक-विज्ञान काय का परित्याग करता है तो इसकी पुनरुत्पत्ति पुनर्भव के लिए ही होती है।