पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०२

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बौद-धर्म-दरान क्योंकि वह माध्यमिक के अनुसार काल-त्रय में कुछ भी उत्पन्न नहीं होता । सामान्यतः उत्पद्यमान ( उत्पन्न होती हुई वस्तु)की उत्पत्ति की प्रतीतिगोचर होती है, किन्तु विचार करने पर वह असिद्ध है । उत्पत्ति की अपेक्षा से उत्पद्यमान होता है, इसलिए यह विशेष बताना पड़ेगा कि किस उत्पत्ति की अपेक्षा से वह उत्पद्यमान है । इसे वादी नहीं बना सकता, अनुत्पन्न है, और उत्पन्न होने का कोई निमित्त नहीं दिखाई पड़ता। मलाद से प्रतीत्यसमुत्पाद का विरोध सर्वास्तिवादी माध्यमिक पर एक गंभीर आरोप करता है। कहता है कि आपका यह सर्व-नास्तित्व-बाद अत्यन्त भयंकर है। श्राप तथागत के वचनों की व्याख्या के व्याज से केवल दोष निकालने का अपना कौशल दिखाते हैं, किन्तु इससे नथागत के परमार्थ सत्य प्रतीत्यसमुत्पाद का वध होता है । भगवत् ने 'अस्मिन्सति इदं भवति अस्थोत्पादादिदमुपद्यते' इस न्याय से प्रकृति-ईश्वर-स्वभाव-काल-अणु-नारायणादि के जगत् सत्व का निराम किया, किन्तु आपने उत्पद्यमान-उत्पन्न-अनुत्पन्न आदि विकल्प करके उत्पाद का ही बाध कर दिया। आपने यह नहीं देखा कि आपके द्वारा तथागत-शान की जननी प्रतीत्यसमुत्पत्ति का ही वध हो रहा है। प्राचार्य चन्द्रकीर्ति कहते हैं कि मैं दशवल-जननी माता प्रतीत्य-मुत्पत्ति का वध नहीं करता हूँ। प्रत्युत यह पाप आपके ही सिर है। भगवान् ने प्रतीत्यसमुत्पाद की देशना से सर्व धर्मों की निःसारता बताई है। विद्यमान पदार्थ सस्वभाव होते हैं, क्योंकि स्व की अनपायिता ( अविनाश ) ही स्व-भाव है। स्व की विद्यमानता के कारण ही स्वभाव किसी की अपेक्षा नहीं करता, और न उत्पन्न ही होता है। इस प्रकार सस्वभाववादी के ही मत में भावों का प्रतीत्य-समुत्पन्नत्य बाधित होता है, और उससे धर्म और बुद्ध का दर्शन भी बाधित होता है । माध्यमिक कार्य और कारण दोनों को प्रतीत्य-समुत्पन्न मानता है, इगलिए उसके मत में पदार्थ शान्त' और स्वभाव-रहित हैं। हम व्याख्या से माध्यमिक तथागतों की माता प्रतीत्य- समुत्पत्ति का स्वरूप स्पष्ट करते हैं। अपचमानके उत्पादन निषेध वादी कहता है कि जो कुछ हो, उत्पाद उत्पद्यमान की उत्पत्ति करता है; क्योंकि घटोत्पत्ति क्रिया की अपेक्षा से घट की उत्पद्यमानता प्रतीत होती है। किन्तु उत्पाद के पूर्व जब कोई अनुत्पन्न घट नहीं है, तो उसकी उत्पत्ति क्रिया की अपेक्षा करके उत्पाद कहना ठीक नहीं । वादी कहे कि यद्यपि उत्पाद के पूर्व यह नहीं है, तथापि उत्पन्न होकर तो घट संज्ञा का लाभ करेगा। यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि जब उत्पत्ति-क्रिया प्रवृत्त होती है, तो उस समय का वर्तमान पदार्थ घट संज्ञा प्राप्त करता है, किन्तु जब मात्र अनागत है, तो उससे संबन्ध न होने के कारण क्रिया की प्रवृति ही नहीं होगी, फिर भट की वर्तमानता कैसे ? क्रिया 1. प्रतीत्य यद्यद्भवति समछान्तं स्वभावतः ।