पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्ध-धर्म-दर्शन भारयानुपलब्धि दृश्यानुपलब्धि का हमने विवेचन किया है। यह प्रभाव और प्रभाव-व्यवहार में प्रमाण है। अदृश्यानुपलब्धि का क्या स्वभाव है और उसका क्या व्यापार है ? अर्थ, देश, काल और स्वभाव में से किसी से या सबसे विप्रकृष्ट हो सकते हैं । इनका प्रतिषेध संशय हेतु है। इसका स्वभाव क्या है ? प्रत्यक्ष और अनुमान दोनों की निवृत्ति इसका लक्षण है। प्रमाण से प्रमेयसत्ता की व्यवस्था होती है । अत: प्रमाण के अभाव में प्रमेय के श्रभाव की प्रतिपत्ति युक्त है । इसका उत्तर यह है । प्रमाण की निवृत्ति से दृश्यानुपलब्धि की सिद्धि नहीं होती। जब कारण की निवृत्ति होती है तब का निवृत्त होता है। जब यापक की निवृत्ति होती है तब व्याप्य निवृत्त होता है । किन्तु प्रमाण प्रमेय का कारण नहीं है और न व्यापक है । अतः जब दोनों प्रमाणों की निवृत्ति होती है तब प्रमेय अर्थ की निवृत्ति सिद्ध नहीं होती और क्योंकि प्रमाण का प्रभाव कुछ सिद्ध नहीं करता, इसलि। अदृश्य की अनुपलब्धि संशय का हेतु है, निश्चय-हेतु नहीं है । किन्तु यह भी युक्त है कि प्रमाणसत्ता से प्रमेयसत्ता सिद्ध होती है। प्रमाण प्रमेय का कार्य है । कारण के बिना कार्य नहीं होता। किन्तु ऐसा नहीं है कि कारण का कार्य अवश्य- मेव हो । अतः प्रमाण से प्रमेयसत्ता की व्यवस्था होती है। प्रमाणाभाव से प्रमेयाभाव की व्यवस्था नहीं होती। परार्थानुमान परार्थानुमान वह है जिससे दूसरे को ज्ञान प्रतिपादित कराते हैं। यह त्रिरूप लिंग का प्रकाशन है। यहाँ भी लिंग या हेतु या साधन के तीन रूप है । यह इस प्रकार हैं- १.अन्वय यथा-"वहाँ धूम है वहाँ बाह्न है" अथवा " जो जात है वह अनित्य है। २. व्यतिरेक यथा - "जहाँ वहि नहीं है यहाँ धूम भी नहीं है"। ३. पक्षधमत्व यथा--"यहाँ वही धूम है, जिसका वहि के साथ अविनाभाव है"। परार्यानुमान शन्दात्मक है। बचन द्वारा निरूप लिंग का श्राख्यान होता है । अनुमान को हमने पहले सम्यग ज्ञानात्मक बताया है । इसका क्या कारण है कि अब हम उसे बचनात्मक हमारा उत्तर है कि कारण में कार्य का उपचार है। जब त्रिरूप लिङ्ग का वचनामक श्राख्यान होता है, तब उस पुरुष में त्रिरूप लिन की स्मृति उत्पन्न होती है और स्मृति से अनुमान होता है। उस अनुमान का त्रिरूप लिंगाभिधान परपस्या कारण है। वचन उपचार वश अनुमान , मुख्यतः नहीं। लिंग के स्वरूप तथा उसके प्रतिपादक शब्द दोनों का