पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७५

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नौरोजी सभापति न होते तो वहीं दो टुकड़े हो गये होते। उनके कारण यह संकट टला । इस नवीन दल के कार्यक्रम के प्रधान अंग थे स्वदेशी-विदेशी माल का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा। कांग्रेस का लक्ष्य बदलने की भी बातचीत थी। दादाभाई नौरोजी ने अपने भाषण में 'स्वराज्य' शब्द का प्रयोग किया और इस शब्द को लेकर दोनों दल में विवाद खड़ा हो गया। यद्यपि पुराने नेता बहिष्कार के विरुद्ध थे। उनका कहना था कि इससे विद्वेष और धर्मों का भाव फैलता है, तथापि बंगाल के लिए उनको भी इसे स्वीकार करना पड़ा। जापान की विजय से एशिया में जन जागृति का प्रारम्भ हुा । एशिया कासियों ने अपने खोये हुए श्रात्म-विश्वास को फिर से पाया और अंग्रेजों की ईमानदारी पर बो बालोचित विश्वास था वह उठने लगा । इस पीढ़ी का अंग्रेजी शिक्षितवर्ग समझता था कि अंग्रेज हमारे कल्याण के लिए भारत श्राया है और जब हमको शामन के कार्य में दक्ष बना देगा, तब वह स्वेच्छा से राज्य सौंरकर चला जायगा। बिना इस विश्वास को दूर किये राजनीति में प्रगति श्रा नहीं सकती थी। लोकमान्य ने यही काम किया। इस नये दल की स्थापना की घोषणा दलकत्ते में की गयी। इसकी ओर से कलकत्ते में दो सभाएँ हुई । एक सभा बड़ा बाजार में हुई थी । उसमें भी मैं मौजूद था। इम सभा की विशेषता यह थी कि इसमें सब भाषण हिन्दी में हुए थे | श्री विपिन-चन्द्रपाल और लोकमान्य तिलक भी हिन्दी में बोले थे। श्री पाल को हिन्दी बोलने में कोई विशेष कटिनाई नहीं प्रतीत हुई, किन्तु लोकमान्य को हिंदी टूटी फूटी थी। बड़ा बाजार में उत्तर भारत के लोग अधिकतर रहते हैं। उन्हीं की सुविधा के लिए हिन्दी में ही भाषण कराये गए थे। बंगाल में इस नये दल का अच्छा प्रभाव था। कलकत्ते की कांग्रेस के बाद संयुक्त प्रांत को सर करने के लिए दोनों दलों में होड़ लग गयी । प्रयाग में दोनों दलों के बड़े नेता आये और उनके व्याख्यानों को सुनने का मुझे अवसर मिला। सबसे पहले लोकमान्य श्राये। उनके स्वागत के लिए हम लोग स्टेशन पर गये । उनकी सभा का आयोजन थोड़े से विद्यार्थियों ने किया था। शहर के नेताओं में से कोई उनके स्वागत के लिए नहीं गया। उनकी सवारी के लिए एक सज्जन घोड़ा गाड़ी लाये ये। हम लोगों ने छोड़ा खोल कर स्वयं गाड़ी खींचने का आग्रह किया किन्तु उन्होंने स्वीकार नहीं किया । लोकमान्य के शब्द थे –'इस उत्साह को किसी और अच्छे काम के लिए सुरक्षित रखिये। एक वकील साहब के अहाते में उनका व्याख्यान हुश्रा था । वकील साहब इलाहाबाद से बाहर गये हुए थे उनकी पत्नी ने इजाजत दे दी थी। हम लोगों ने दरी बिछायी । एक विद्यार्थी ने 'वन्दे मातरम्' गाना गाया और अंग्रेजी में भाषण शुरू हुश्रा । लोकमान्य तर्क और युक्ति से काम लेते थे। उनके भाषण में हास्व-रस का भी पुट रहता था। किन्तु वह भावुकता से बहुत दूर थे। उन्होने कहा कि अंग्रेजी ममल है कि ईश्वर उसी की सहायता करता है जो अपनी सहायता करता है । तो क्या तुम समझते हो कि अंग्रेज ईश्वर से भी बड़ा है। इसके कुछ दिनों बाद श्री गोखले पाए और उनके कई व्याख्यान कायस्थ पाठशाला में हुए । एक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि श्रावश्यकता पड़ने पर हम और टैक्स देना भी बन्द