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७४ : भक्तभावन
 


कवित्त

जो पे बेगुनाही तो गुनाही सदा रावरो मैं। आपे जो गुनाही जो न खेलो खेल धूमके।
होत हुरिया इन लुगाइन की कूकें भलें। पिचकी अचूकें चले बूके लूम लूम के।
ग्वाल कवि कैसो लाल लायो हों गुलाल हाल। पाऊँ तो हुकम तो लगाऊँ भाल भूम के।
झूमके जड़ाऊ झूम झूम के झपाक हाथ। लेत ये कपोल गोल गोरे चूम चूम के॥९१॥

कवित्त

मोहन औ मोहिनी[१] ने फागकी मचाइ लाग। बाग में बजत बाजे कौतुक विशाल है।
केसर के रंग बहे छज्जन पें छातन पें। नारे पे नदी में ओ निकास पें उछाछ है।
ग्वाल कवि कुंकुम को पालन रसालन में। तालन तमालन पे फूटत उताल है।
गंज गुल लालन में लालन पें ग्वालन पे। बाल बाल बालन पे घुमड्यो गुलाल है॥९२॥

कवित्त

आइ एक ओर तें अलीन लें किशोरी जोरी। आयो एक ओर ते किशोर वाम हाल पें।
भाजि चल्यो छल छड़ी छोर पें छबीलिन में। छड़ीकों उठाय धाय मारी उर माल पें।
ग्वाल कवि हो हो कहिचोर कहि चेरो कहि। बीचमें नचायो में इतत थइ ताल पें।
ताल में तमाल पें गुलाल उड़ि छायो एसो। भयो एक और नंदलाल नंदलाल पें॥९३॥

कवित्त

फाग में कि बाग में कि भाग में रही है भरि। राग में कि लाग में कि सोहे खान झूठी में।
चोरी में कि जोरी में कि रोरी में कमोरी में। कि झूम झकझोरी में कि झोरिन की की ऊठी में।
ग्वाल कवि नैनमें कि सैनमें कि बेनमें कि। रंगलै न देनमें कि ऊजरी अंगूठी में।
मूठी में गुलाल में ख्याल में तिहारे प्यारी। कामे भरी मोहनी सो भयो लाल मूठी में॥९४॥

कवित्त

आज नंदलाल संग ले ले गोप ग्वाल बाल। खोले ख्याल दे देताल गावनि प्रसिद्धि की।
कोरति की कुंवरि किशोरी गोरी लाखन लें। जोरी करी होरी होरी राति रूपरिद्धि की।
ग्वाल कवि जुरि जुरि दे दे मूठि धूरि पूरि। झेलें रंग मुरि सोमान नेह निधि की।
केसर वही सो करे रोष के फानन पीरे। उडिके गुलाल करी लाल लटे विधि की॥९५॥

वसन्त वर्णन

कवित्त

अलिन के झुण्ड ते वितुण्ड झूमे ठौर ठौर। धवन तुरंग रंग रंग के गवन साज।
ललित कुसुम्भ रथ कोकिल लियादे जादे। मैन फौजदार बन्यो औज मौज शिरताज।
ग्वाल कवि कहै बेस बागन के धारन में। गइके गुलाब धरे रतनप्रभा समाज।
आयो रितुराज तेरे उरनि नजर लेकें। लीजें आज यदुराज ब्रजराज महाराज॥९६॥


  1. मूलपाठ––मोहीनि।