पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१०९

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। विशाल वाटिका ६३ किन्तु हा कुचाली काल चाण्डाल का सत्यानाश हो, अकस्मात् एक. ऐसा हिमपात हुआ कि इस वाग के सब पेड़ ठिठर-से गये और वे फल-फूल जो ऐहिक तथा प्रामुष्मिक ज्ञान इहलोक और परलोक के उपकार-साधन का स्रोत या केन्द्र है, हिम के करका-पात से दबकर सब छिप गया । विदेशी सभ्यता और विदेशी शिक्षा की तो यही चेष्टा थी की इस पवित्र ज्ञान के खजाने को सर्वथा निर्मल और नष्ट-भ्रष्टकर डालें, किन्तु जो सत्य है उसका त्रिकाल मे नाश नहीं होता। Truth Is always truth. दूसरे पूर्वज महर्षियों के तपोबल का प्रभाव और सत्य पर उनकी पूरी दृढ़ता कैसे व्यर्थ हो सकती है ? वे ही प्रद्योतित हृदयवाले जो पश्चिमी सभ्यता और शिक्षा से बहक महात्मा-ऋषियों के अनुभव और ज्ञान को "नानसेन्स" कहने लगे थे, अब उसी को सत्य के पाने का द्वार मान रहे हैं । इस क्यारी की शोभा के निरीक्षण मे हम कहाँ तक आपको विलमाये रहें ? इसके एक-एक पेड़ ऐसे हैं जिनका पूरा परिचय प्राप्त करने के लिये आपको महोनों और वो चाहिये । चलिये, आगे बढ़िये, देखो सामने यह कवि-वाटिका की क्यारी लहलहाती हुई अनिर्वचनीय श्नानन्द-सन्दोह मन में उपजा रही है। इसका यह एक अद्भुत प्रभाव है कि यहाँ पहुँच तुम्हारे मन-मधुप को कहीं और ठौर विचरने की इच्छा हा न होगी, न उसे इतना अवकाश मिलेगा। "नहि प्रफुल्लं सहकारमेत्य वृक्षान्तरं कांक्षति पटपदाली।" चलते-चलते आप थक गये होंगे इससे थोड़ा ठहर इन्हीं द्रुम-कुल्लों में विश्राम ले तब आगे चलिये । तथास्तु (सैलानी बैठ गया, थोड़ा सुस्ता कर) व्यर्थ ही लोग अमृत को सराहते हैं, स्वग मे देवगण निरन्तर अमृत का एक रस-पान करते-करते अब गये होंगे इस वाटिका के शृङ्गार वीर, करुणा श्रादि नौ रत का पान करते हुये घरती पर मनुष्यों को देख अपने को धिक्कारते होंगे। कालिदास, भव-