पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६४ .' भट्ट-निबन्धावली भूति सरीखे कवियों की सूक्ति का रसपान जिन्हें स्वप्न में भी काहे को - मिलता होगा। "सस्कविरसनासूर्फी निस्तुपतरशब्दशालिपाकेन ! तृप्तो दयिताधरसपि नादियते का सुधावासी॥" . कवि ने अमृन से दयिताधर को उत्तम कहा है। सच है- अमृत निगाड़े को कहाँ इतना साहस जा कविता के दिव्य रस की नुलना कर सके । कवि ने पहले सुधा-दासी से टयिताधर को पादर दिया, फिर कविता के रस का स्मरण कर उसे भी भुला दिया । केवल कविता ही पर क्या, यह वाटिका तो रत को रवान हो रही है। जिस विषय का जो रसिक है उसे अपने मन के माफिक विनोद गहाँ मिलना अति सुलभ है। वाटिका की किम-किस बात की सराहना की जाय- यहाँ की धरती की उर्वरा-शक्ति, जल-वायु की मृदुता; समय-समयं ऋतु का परिवर्तन पृथ्वी के जिस भूभाग के जो हों, वे सब अपने-मापने घर का सुख यहाँ पा सकते हैं । इमी से जो यहाँ आये उन्होंने फिर अपनी जन्मभूमि में लौट जाने का मन न किया और गे श्रागे श्राब अपना स्वत्व ही इस पर स्थापित करते गये। अपनो पहिले को जसरी- वसरीको तिलांजली दे उन्ही के समकक्ष बन गये निनका मास और सधिर अनादि काल से इस वाटिका की भूमि ने मला है। दाचित मेदिनी पृथ्वी का नाम इसी से पड़ गया कि पृथ्वी उन्हीं की मेदा-चर्म की बनी है, अस्तु इस वाटिका का वर्तमान दृश्य देख यह निश्चय ही गया कि- 'प्रायेण समग्यविधी गुणानां परामुखी विस्यमानस्या वृचिः"। विधाता ममम गुण एक हो ग रखने का बड़ा विरोधी है । जैसी यह सुललित वाटिका मन को रमाने वाली थी, भूमि मस्त गुरा-पन गौर फूल-पाल भी मुगन्धि और मिठाम में अद्वितीय गे, वैसा दोहन हलो १ श्रात्मगौरवं क्यों न गया। इनको अपने रूप का परिचय