पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१११

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विशाल वाटिका ' , ६५ "बिल्कुल न रहा, न जानिये कब से ये - अपने को भूले हुये हैं। हमे खेद है कि अपने पास ही जापान की वाटिका का नवाभ्युत्थान देख इन्हें अपने पूर्व-रूप-संपादन का हौसिला क्यों नहीं होता है ? अनाथ- नाय ! तू जो इन्हें सनाथ किया चाहे तो निमेष मात्र मे सब कुछ कर सकता है । सब तेरे अधीन हैं। नम्बर ११०५