६८ . भट्ट-निवन्धावली ' पीवा पीत्वा पुनः पीत्वा पतिव्वा धरणी तले। उस्थाय च पुनः पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते । "एवेन शुष्क घणकन घटं पिवामि गंगां पिवामि सहसा जपणाद्र "एका लज्जा परस्यज्य त्रैलोक्य विजयी भवेत" शाबास गाजी मर्द! अच्छे वश उजागर कुल की कलेगी पैदा हुये। "शस्याने ध्वजो यथा। लू-लू है जाने दो, इस सुन्दर को । लो इधर ध्यान दो छल्ले- दार बालो में तेल टपकता हुश्रा, पान के वीड़ों से गाल फूला मानो बतौड़ी निकली हो, भाड़ा तिलक-मुह चुचुका, आशिकतन, हिमा- कत नजाकत शानोशौकत मे लासनी । घर में भू जी भॉग भी नहीं, पर बाटर मानो दूसा नवाब शाह वाजिद अली। अरे खिलौनेवाले बाबू साहब की खिलीना दे। चटुआ भी तेरे पास है १२ वाबू साहब चटुमा चाटेंगे। चरनी है । क्या लेगा? उं: पाकेट खाली। "धान पुण्य को कौदी नाही शिक्षकोटी को घोडा जाने दो छोड़ दे बालक का पिण्ड, श्री खिलौनावाला जा। क्यों किसी का पोल खोल फजीहताचार करता है ? श्राहा कहीं सुख कहीं बैगनी कहीं नीली वहीं पीलीभीत-भांति क रग की बदली घटा की घटा घर में उमड़ी चली श्रा रही है। यह कौन है-बी. दुरसो और यह दुगर का० चानो। वी. खानो, मरणानी, गुमानी, कनानो, अमीरोग मारत, शहर के शहरीयत भी शान, विसनी अाशिक तनावी प्रान, और यह दूसरा कौन दे बी० हो । बरे श्री बी० दुलो जनगरि पर्वत बी श्यामरा अनुसार करनेवाले तुम्हारे , -अत्यंग की शांगा पर नन-मन-धन सब बारे हुये चे मुफलिस
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